Sunday, 12 June 2016

शिवं सर्वत्र चिन्तयेत् -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           सनातन परम्परा मे अनेक देवी-देवताओं की चर्चा की गयी है।प्रायः सभी शक्ति-सम्पन्न ; ऐश्वर्यवान ; सर्वसमर्थ ; कल्याणकारी ; भक्तवत्सल एवं सुखदायक हैं।परन्तु रुचि एवं सुविधा की दृष्टि से भगवान शिव जी सर्वाधिक लोगों द्वारा पूज्य एवं उपास्य हैं।वे साक्षात् कल्याण -स्वरूप हैं।सब का कल्याण करना उनका स्वभाव है।अतः समस्त कल्याणार्थियों को शिवोपासना अवश्य करनी चाहिए।उनकी उपासना से कल्याण होना सुनिश्चित है।
           शिवोपासना के लिए अनेक विधियाँ बतायी गयी हैं।कुछ विधियाँ तो नितान्त श्रमसाध्य एवं व्ययसाध्य हैं।परन्तु उनका नाम-स्मरण या नाम-संकीर्तन अपेक्षाकृत अधिक सुगम एवं लाभप्रद विधि है।स्कन्दपुराण के अनुसार जिनकी जिह्वा के अग्रभाग मे " शिव " यह दो अक्षरों वाला नाम विराजमान रहता है ; वे धन्य हैं ; वे महात्मा हैं और वे ही कृतकृत्य हैं।जिन्होंने शिवस्मरण कर लिया या नामोच्चारण कर लिया है ; वे निश्चित रूप से साक्षात् रुद्र हैं ; इसमे किञ्चित् सन्देह नहीं है।निरन्तर शिव-नाम-स्मरण से मनुष्य के सारे कलुष मिट जाते हैं।वह पूर्णतः निष्पाप होकर अपने समस्त मनोरथों को प्राप्त कर लेता है।इसमे न तो धन की आवश्यकता है और न अधिक श्रम ही करना पड़ता है।
            नाम-स्मरण या नाम-संकीर्तन की सर्वाधिक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि इसमे किसी विशिष्ट नियम या संयम का प्रतिबन्ध नहीं है।अतः जो मनुष्य पवित्रता अपवित्रता का विचार किये बिना सदा-सर्वदा नाम-स्मरण मे लगा रहता है ; वह शीघ्रातिशीघ्र सांसारिक आवागमन से मुक्त हो जाता है।इसलिए चलते-फिरते ; उठते-बैठते ; सोते-जागते ; आँख खोले या बन्द किये हुए ; पवित्रता अथवा अपवित्रता मे सर्वत्र शिव जी का ही चिन्तन करना चाहिए ।इसमे किसी विशिष्ट नियम की आवश्यकता नहीं है ---
  अशुचिर्वा शुचिर्वापि सर्वकालेषु सर्वदा।
  नामसंस्मरणादेव संसारान्मुच्यते क्षणात्।।
गच्छंस्तिष्ठन् स्वपञ्जाग्रदुन्मिषन्निमिषन्नपि।
शुचिर्वाप्यशुचिर्वापि शिवं सर्वत्र चिन्तयेत्।।

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