Thursday, 26 May 2016

सती -अवतार 1 -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना आरम्भ की तब उन्होंने सर्वप्रथम पञ्चतत्त्वों ; पर्वतों ; समुद्रों ; वृक्षों ; काल-विभाग आदि असंख्य पदार्थों की रचना की।इसके बाद मरीचि ; भृगु ; अंगिरा ; पुलह ; पुलस्त्य ; वसिष्ठ ; क्रतु ; अत्रि ; दक्ष ; नारद ; कर्दम ; धर्म ; देवताओं ; असुरों आदि को उत्पन्न किया।फिर ब्रह्मा जी आधे शरीर से स्त्री और आधे शरीर से पुरुष हो गये।उन दोनो के संयोग से स्वायम्भुव मनु और शतरूपा का जन्म हुआ।
          बाद मे स्वायम्भुव एवं शतरूपा का विवाह हुआ ; जिससे मैथुनी सृष्टि का आरम्भ हुआ।उनसे प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक दो पुत्र तथा तीन पुत्रियाँ हुईं।पुत्रियों के नाम -- आकूति ; देवहूति और प्रसूति थे।इनमे से प्रसूति का विवाह प्रजापति दक्ष के साथ हुआ।इनसे चौबीस पुत्रियाँ हुईं।इन चौबीस पुत्रियों मे सती भी थीं ; जिनका विवाह शिव जी के साथ हुआ।
             सती कोई नवीन देवी नहीं थीं ; बल्कि शिव जी की अभिन्न शक्ति ही थीं।प्राचीन काल मे सर्वव्यापी भगवान शिव जी ने जिन्हें तपस्या के लिए प्रकट किया तथा रुद्रदेव ने त्रिशूल के अग्रभाग पर रखकर सदैव जिनकी रक्षा की थी ; वे ही भगवती शिवा लोकहित के लिए दक्ष के घर मे सती के रूप मे प्रकट हुई थीं।इस विषय मे एक रोचक आख्यान उपलब्ध है।
           एक बार प्रजापति दक्ष ने जगदम्बिका शिवा को पुत्री रूप मे प्राप्त करने की इच्छा से तीन सहस्र दिव्य वर्षों तक कठोर तप किया।भगवती शिवा प्रसन्न हो गयीं।उन्होंने दक्ष को प्रत्यक्ष दर्शन दिया और वर माँगने को कहा।दक्ष ने स्तुति करने के बाद निवेदन किया कि भगवान शिव जी रुद्र नाम से ब्रह्मा जी के पुत्र के रूप मे अवतरित हो चुके हैं।अतः आप भी मेरी पुत्री के रूप मे अवतरित होने की कृपा करें ; जिससे आप रुद्र जी की पत्नी बन सकें।जगदम्बा ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।कालान्तर मे वही जगदम्बा शिवा ही सती के रूप मे अवतरित हुईं।

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