Monday, 9 May 2016

श्री सोमनाथ -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

         द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे श्री सोमनाथ जी का नाम अग्रगण्य है।ये गुजरात प्रान्त मे काठियावाड़ क्षेत्रान्तर्गत प्रभास के विरावल नामक स्थान पर प्रतिष्ठित हैं।इनके प्रादुर्भाव की कथा अत्यन्त रोचक एवं पतित-पावन है।
           प्रजापति दक्ष की सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ हुआ था।सभी सुन्दर ; गुणवती एवं संस्कारी थीं।किन्तु चन्द्रमा उनमे से रोहिणी को सर्वाधिक चाहते थे।यह बात अन्य स्त्रियों को अच्छी नहीं लगी।अतः दुःखी छब्बीस स्त्रियों ने अपने पिता दक्ष से अपनी व्यथा सुनाई।दक्ष ने चन्द्रमा को दो बार समझाया कि आपको सभी पत्नियों से समान व्यवहार करना चाहिए।किन्तु चन्द्रमा ने उनकी बात नहीं मानी।अतः क्रुद्ध दक्ष ने उन्हें क्षयरोग होने का शाप दे दिया।इससे चन्द्रमा की कान्ति क्षीण हो गयी।प्रकृति एवं सृष्टि का सन्तुलन बिगड़ने लगा।
            दुःखी चन्द्रमा ने ब्रह्मा जी से स्वस्थ होने का उपाय पूछा।ब्रह्मा जी ने उन्हें महामृत्युञ्जय मन्त्र का अनुष्ठान करते हुए शिव जी की आराधना करने का निर्देश दिया।चन्द्रमा ने प्रभास क्षेत्र मे शिव लिंग की स्थापना करके कठोर तप आरम्भ किया।छः महीने बाद शिव जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए और वर माँगने को कहा।चन्द्रमा अपने स्वस्थ होने का वर माँगा।शिव जी ने कहा कि एक पक्ष मे प्रतिदिन तुम्हारी कान्ति क्षीण होती जायेगी और दूसरे पक्ष मे वह उत्तरोत्तर बढ़ती जायेगी।
           इसके बाद उस क्षेत्र के माहात्म्य को बढ़ाने तथा चन्द्रमा का यश विस्तृत करने के लिए शिव जी चन्द्रमा ( सोम ) के नाम पर ही सोमनाथ या सोमेश्वर नाम से ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रतिष्ठित हो गये।कालान्तर मे चन्द्रमा पूर्णतः स्वस्थ हो गये।वह स्थान प्रबल पापनाशक एवं सर्वाभीष्ट-प्रदायक रूप मे प्रसिद्ध हो गया।

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