द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम मे श्री त्र्यम्बकेश्वर जी की गणना अष्टम स्थान पर की जाती है।ये महाराष्ट्र प्रान्त के नासिक जनपद मे प्रतिष्ठित हैं।इनके प्रादुर्भाव की कथा बहुत रोचक एवं शिक्षाप्रद है।
एक बार महर्षि गौतम जी अपनी पत्नी अहल्या के साथ तप कर रहे थे।उसी समय वहाँ भयानक अकाल पड़ गया।महर्षि ने वरुण देव की आराधना करके एक गड्ढे मे अक्षय जल प्राप्त किया।इससे वहाँ जल का संकट दूर हो गया।परन्तु आश्रम-वासिनी ब्राह्मणियों के मन मे प्रबल ईर्ष्या भाव उत्पन्न हो गया।उन्होंने महर्षि का अनिष्ट करने के लिए अपने पतियों को उकसाया।
उन ब्राह्मणों ने महर्षि का अनिष्ट करने के लिए अपनी आराधना से गणेश जी को तैयार कर लिया।गणेश जी न चाहते हुए भी भक्तों के अनुरोध से महर्षि का अनिष्ट करने हेतु प्रस्तुत हुए।वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण कर महर्षि के खेत मे चरने लगे।महर्षि ने एक तिनके से गाय को हटाने का प्रयास किया।गाय पृथ्वी पर गिरी और मर गयी।सभी लोग महर्षि को धिक्कारने लगे।महर्षि गौतम भी आश्चर्य चकित थे।किन्तु अब तो उन्हें गोहत्या लग ही गयी।
महर्षि गौतम ने वहाँ से कुछ दूरी पर एक नया आश्रम बनाकर ब्राह्मणों के निर्देशानुसार प्रायश्चित्त किया।उसके बाद वे पत्नी सहित शिव जी की आराधना मे संलग्न हो गये।उनकी तपस्या से आशुतोष भगवान शिव जी प्रसन्न हो गये।उन्होंने महर्षि के समक्ष प्रकट होकर उनसे वर माँगने को कहा।महर्षि ने कहा कि मुझे निष्पाप करके गंगा जी प्रदान कीजिए।शिव जी के आदेशानुसार गंगा जी प्रकट हो गयीं।उनका प्राकट्य महर्षि गौतम के कारण हुआ था ; इसलिए उन्हें गौतमी गंगा कहा जाता है।इस समय वे गोदावरी भी कहलाती हैं।
उसी समय वहाँ सभी देवता ; ऋषि ; मुनि आदि आ गये।सबने गौतम ; गंगा और शिव जी का पूजन किया।उसके बाद देवताओं तथा महर्षि गौतम की प्रार्थना पर गंगा जी और शिव जी वहीं प्रतिष्ठित हो गये।वही ज्योतिर्लिंग त्र्यम्बकेश्वर नाम से प्रसिद्ध है।यह शिवलिंग बहुत प्रभावशाली एवं पुण्यदायक है।यह घोरातिघोर पापराशि को भी नष्ट करने वाला है।इस समय भी जब-जब बृहस्पति सिंह राशि मे स्थित होते हैं ; तब-तब यहाँ विशाल मेला लगता है।उस समय सभी तीर्थ एवं देवगण यहीं निवास करते हैं।वे अपने भक्तों को अभीष्टसिद्धि प्रदान कर उसे कृतकृत्य कर देते हैं।
Friday, 13 May 2016
श्री त्र्यम्बकेश्वर -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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