Tuesday, 17 May 2016

गृहपति अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           शिव जी के असंख्य अवतारों मे गृहपति अवतार का बहुत महत्त्व है।इन्हें अग्न्यवतार भी कहा जाता है।इनके प्राकट्य की कथा बहुत रोचक और शिक्षाप्रद है।
           प्राचीन काल मे नर्मदा नदी के तट पर स्थित नर्मपुर नगर मे विश्वानर नामक एक शिवभक्त मुनि रहते थे।एक दिन उनकी पत्नी शुचिष्मती ने उनसे महेश्वर सदृश पुत्र की याचना की।मुनिवर अपनी पत्नी को आश्वासन देकर शिव जी की आराधना करने के लिए काशी की ओर चल पड़े।वहाँ पहुँच कर उन्होंने वीरेशलिंग की त्रिकाल अर्चना करते हुए घोर तप किया।एक वर्ष के बाद उन्हें शिवलिंग के मध्य एक अष्टवर्षीय विभूति-विभूषित बालक दिखायी दिया।उसका स्वरूप शिव जी के ही समान था।मुनिवर ने उन्हें परमेश्वर शिव जानकर अभिलाषाष्टक स्तोत्र द्वारा उनकी स्तुति की।
          बालरूपी शिव जी ने कहा कि हे मुनिश्रेष्ठ ! मै तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हूँ।अतः तुम वर माँगो।विश्वानर मुनि ने कहा कि आप तो सर्वान्तर्यामी हैं।इसलिए अपनी इच्छानुसार वर प्रदान करें।शिव जी ने कहा कि मै तुम दोनो पति-पत्नी की अभिलाषा के अनुरूप आपके पुत्र रूप मे प्रकट होऊँगा।इसी वरदान के परिणाम स्वरूप शिव जी शुचिष्मती के गर्भ से पुत्र रूप मे अवतरित हुए।उस समय उनका नाम गृहपति रखा गया।
          एक बार गृहपति का दर्शन करने के लिए नारद जी आये।उन्होने गृहपति को देखकर बताया कि यह बालक सर्वगुण सम्पन्न है किन्तु बारह वर्ष की आयु मे इसे बिजली अथवा अग्नि द्वारा भय उत्पन्न होगा।इसे सुनकर विश्वानर मुनि रोने लगे।उस समय गृहपति ने अपने माता-पिता को सान्त्वना देते हुए कहा कि मै भगवान मृत्युञ्जय की आराधना करके महाकाल को भी जीत लूँगा।अतः आप लोग निश्चिन्त रहें।
          इसके बाद गृहपति काशी गये और भगवान विश्वनाथ का दर्शन किया।उसके बाद शुभ मुहूर्त मे शिवलिंग की स्थापना करके उनकी आराधना करने लगे।कुछ दिनो बाद देवराज इन्द्र प्रकट हुए और उनसे वर माँगने को कहा।गृहपति ने उन्हें दुत्कारते हुए कहा कि तुम दुराचारी हो।मै तुमसे वर-याचना नहीं करूँगा।मेरे वरदायक केवल शिव जी ही हैं।इसे सुनकर इन्द्र बहुत क्रुद्ध हुआ।उसने वज्र से प्रहार करना चाहा।उसी समय शिव जी प्रकट हो गये।उन्होंने बताया कि इन्द्र रूप मे प्रकट होकर मै ही तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।तुम उस परीक्षा मे सफल हो गये हो।अब तुम्हारे ऊपर यमराज का भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।तुम्हारे द्वारा स्थापित यह शिवलिंग " अग्नीश्वर " नाम से प्रसिद्ध होगा।इनका दर्शन करने से मनुष्य बिजली और अग्नि से भयभीत एवं पीड़ित नहीं होगा।

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