Thursday, 12 May 2016

श्रीभीमशंकर -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम मे श्रीभीमशंकर जी की गणना षष्ठ स्थान पर की जाती है।इनकी स्थिति के विषय मे दो मत प्रचलित हैं।एक मत के अनुसार ये मुम्बई से पूरब एवं पूना से उत्तर दिशा मे भीमा नदी के तट पर सह्याद्रि पर्वत पर प्रतिष्ठित हैं।यहाँ सूर्यवंशी शासक भीम की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जी ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रकट हुए थे।इसीलिए उन्हें भीमशंकर कहा जाता है।
            द्वितीय मतानुसार भीमशंकर ज्योतिर्लिंग असम प्रान्त के कामरूप जनपद मे ब्रह्मपुर पहाड़ी पर विराजमान हैं।प्राचीन काल मे भीम नामक एक महाबली राक्षस अपनी माता कर्कटी के साथ सह्य पर्वत पर निवास करता था।उसने एक दिन अपने पिता के विषय मे पूछा।माता कर्कटी ने बतलाया कि मै विराध की पत्नी हूँ।राम ने जब उनका वध कर दिया तब मै अपने माता-पिता के पास रहने लगी।उसी समय सुतीक्ष्ण मुनि के शाप से वे भस्म हो गये।उसके बाद मै इसी पर्वत पर रहने लगी।एक बार रावण के अनुज कुम्भकर्ण ने बलात् मेरे साथ समागम किया।उसी से तुम्हारा जन्म हुआ है।इसे सुनकर भीम ने कहा कि विष्णु ने मेरे पिता का वध किया है।मै उसका प्रतिशोध अवश्य लूँगा।उसने अपने तप द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अतुल बलशाली होने का वरदान प्राप्त किया।
             उस राक्षस ने देवताओं को पराजित करने के बाद कामरूप नरेश सुदक्षिण को पराजित कर वन्दीगृह मे डाल दिया।राजा प्रतिदिन पार्थिव शिवमूर्ति बनाकर पूजा करते थे।असुर ने सम्पूर्ण पृथ्वी पर आतंक मचा दिया।अतः सभी देवता ; ऋषि ; मुनि आदि ने अपनी सहायता हेतु शिव जी की प्रार्थना की।शिव जी गुप्त रूप से राजा सुदक्षिण के पास रहने लगे।एक दिन राजा शिव-पूजन कर रहे थे ; तभी असुर ने प्रहार करना चाहा।उसी समय शिव जी प्रकट हो गये और उसकी तलवार के खण्ड-खण्ड कर दिये।दोनो मे भयानक युद्ध हुआ।अन्त मे शिव जी ने एक ही हुंकार मे सभी राक्षसों को भस्म कर दिया।
          उसी समय अनेक देवता ; ऋषि ; मुनि आदि आ गये और प्रार्थना करने लगे।उनकी प्रार्थना पर शिव जी वहीं ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रतिष्ठित हो गये।आगे चलकर वही भीमशंकर नाम से प्रसिद्ध हो गये।ये परम कल्याणस्वरूप एवं सुखाश्रय हैं।इनका दर्शन करने से भक्त की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।

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