द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम मे श्रीमल्लिकार्जुन जी की गणना द्वितीय स्थान पर की जाती है।ये श्रीशैल पर्वत पर प्रतिष्ठित हैं।यह स्थान दक्षिण भारत मे कृष्णा जिले मे कृष्णा नदी के तट पर स्थित है।इस पर्वत को दक्षिण का कैलास कहा जाता है।
गणेश जी विवाह कार्तिकेय जी के पहले हो गया।इससे कार्तिकेय जी रुष्ट होकर क्रौञ्च पर्वत पर चले गये।पार्वती सहित शिव जी उनके पास गये और घर लौटने का अनुरोध किया।किन्तु वे लौटे नहीं ; बल्कि वहाँ से दूसरे स्थान पर चले गये।पुत्र-वियोग से दुःखी शिव एवं पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण कर वहीं प्रतिष्ठित हो गये।उसी दिन से वहाँ प्रकट होने वाले शिवलिंग को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग कहा जाने लगा।
यहाँ मल्लिका का अर्थ पार्वती और अर्जुन का अर्थ शिव है।इस प्रकार इस ज्योतिर्लिंग मे शिव और पार्वती दोनो की ज्योतियाँ प्रतिष्ठित हैं।कहा जाता है कि आज भी अमावस्या को शिव जी और पूर्णिमा को पार्वती जी अपने पुत्र स्वामि कार्तिकेय जी को देखने के लिए यहाँ आते हैं।इस ज्योतिर्लिंग की विशिष्ट महत्ता है।इनका दर्शन करने से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त होकर मनोवाँछित फल प्राप्त करता है।इसलिए नित्य असंख्य दर्शनार्थी आते रहते हैं और भरपूर लाभ उठाते हैं।
Tuesday, 10 May 2016
श्रीमल्लिकार्जुन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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