Thursday, 12 May 2016

श्रीविश्वेश्वर -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           मोक्षदायक शिवक्षेत्रों मे काशी का नाम सर्वोपरि है।इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा जाता है।यह भगवान शिव जी का गुह्यतम क्षेत्र है।प्रलय-काल मे भी इसका विनाश नहीं होता है क्योंकि उस समय इसको शिव जी अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं।श्री विश्वेश्वर जी ( बाबा विश्वनाथ जी ) इसी पवित्र नगरी मे विराजमान हैं।इनका दर्शन एवं पूजन करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं और अन्त मे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।इनके प्रादुर्भाव की कथा बहुत रोचक है।
           एक बार सच्चिदानन्द स्वरूप पर ब्रह्म परमात्मा के मन मे इच्छा जागृत हुई कि मै एक से दो हो जाऊँ।वे ही सगुण रूप मे प्रकट होकर शिव कहलाये।वे शिव ही पुरुष और स्त्री -- इन दो रूपों मे प्रकट हुए।उनमे से पुरुष रूप शिव नाम से और स्त्री रूप शक्ति नाम से प्रसिद्ध हुए।उन्होंने ही प्रकृति और पुरुष की सृष्टि की।उसी समय आकाशवाणी हुई कि तुम दोनो तपस्या करो।तुम्हीं से सृष्टि का विस्तार होगा।बाद मे वह पुरुष ही विष्णु और प्रकृति लक्ष्मी नाम से विख्यात हुए।
            आकाशवाणी के निर्देशानुसार प्रकृति और पुरुष ने शिव जी द्वारा निर्मित काशी मे वर्षों तक तप किया।उस तप के परिश्रम से श्वेत जल की जो धारायें निकलीं ; उससे सम्पूर्ण आकाश व्याप्त हो गया।उस समय उस पुरुष के कान से मणि गिर गयी।वही स्थान मणिकर्णिका नाम से तीर्थ बन गया।उस जल से जब वह नगरी डूबने लगी ; तब शिव जी ने उसे अपने त्रिशूल पर उठा लिया।विष्णु जी अपनी पत्नी प्रकृति के साथ वहीं सो गये।तब उनकी नाभि से कमल और कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए।बाद मे उन्हीं से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना हुई।
            उसके बाद शिव जी ने काशी को त्रिशूल से उतार कर मृत्युलोक मे स्थापित कर दिया।साथ ही श्रीहरि से बतलाया कि यह नगरी मुझे अत्यन्त प्रिय है।यहाँ स्वयं परमात्मा ने " अविमुक्त " लिंग की स्थापना की है।इसलिए तुम्हें इस क्षेत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।उसके बाद रुद्र एवं अविमुक्त ने शिव जी से निवेदन किया कि आप काशी को अपनी राजधानी रूप मे स्वीकार कर सदा यहीं निवास करें।शिव जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और ज्योतिर्लिंग रूप मे विराजमान हो गये।
          इस समय विश्वेश्वर या विश्वनाथ जी का मन्दिर समस्त सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था का प्रधान केन्द्र है।विश्वनाथ जी का मूल ज्योतिर्लिंग उपलब्ध नहीं है।लोगों का कहना है कि वह ज्ञानवापी मे पड़ी हुई है।उनसे थोड़ी दूरी पर विश्वनाथ जी का भव्य मन्दिर विद्यमान है।ये अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।ये अपने भक्तों को भोग और मोक्ष दोनो प्रदान करते हैं।अतः सभी को एक बार इनका दर्शन अवश्य करना चाहिए।
      

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