Friday, 27 May 2016

शिव सती विवाह -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

           सती जी अपने माता-पिता के घर शुक्ल पक्षीय चन्द्रकला सदृश निरन्तर बढ़ रही थीं।उनकी बाल-लीलाओं से माता-पिता बहुत प्रसन्न थे।एक दिन उनका दर्शन करने के लिए नारद सहित ब्रह्मा जी पहुँच गये।उनकी शैशव-लीलाओं को देखकर ब्रह्मा जी बहुत प्रभावित हुए।उन्होंने सती जी को भगवान शिव जी की पत्नी बनने का शुभाशीष प्रदान किया।इसे सुनकर केवल सती ही नहीं ; अपितु सम्पूर्ण परिवार बहुत प्रसन्न हुआ।
          सती जी जब युवावस्था को प्राप्त हुईं ; तब वे शिव जी को वर रूप मे प्राप्त करने के लिए तपस्या करने हेतु उद्यत हुईं।वे अपनी माता से आज्ञा लेकर शिवाराधन करने लगीं।कालान्तर मे उनकी तपस्या को देखने के ब्रह्मा ; विष्णु आदि देवगण भी गये।सबने सती जी की भूरि-भूरि प्रशंसा की।उसके बाद सब लोग शिव जी की शरण मे गये और उनसे सती जी को पत्नीरूप मे स्वीकार करने का निवेदन किया।शिव जी ने कहा कि मै सदैव तपस्या मे रत रहने वाला ; विरक्त एवं योगी हूँ।इसलिए वैवाहिक बन्धन मे बँधना मेरे लिए उचित नहीं है।देवताओं ने सती के कठोर तप का वर्णन करते हुए उनसे पुनः निवेदन किया।अन्त मे शिव जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।
             इधर सती जी की तपस्या निरन्तर वृद्धिंगत हो रही थी।उन्होंने आश्विन शुक्ला आष्टमी को उपवास करके नवमी को ध्यानमग्न हो गयीं।उसी समय शिव जी ने उन्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया और उनसे वर माँगने को कहा।सती जी ने अपने लिए अटल वर की याचना की।तब शिव जी ने स्वयं ही कह दिया कि तुम मेरी भार्या बन जाओ।इतना सुनते ही सती जी भावविभोर हो गयीं।इस प्रकार सती जी को मनोवाँछित वर प्रदान कर शिव जी कैलास चले गये।सती जी अपने घर आईं और एक सखी के माध्यम से सम्पूर्ण वृत्तान्त अपने माता-पिता को कहलाया।इसे सुनकर वे भी बहुत प्रसन्न हुए।
           बाद मे शिव जी की आज्ञा से ब्रह्मा जी दक्ष के पास आये और उन्हें सम्पूर्ण समाचारों से अवगत कराया।उसे सुनकर दक्ष जी बहुत प्रसन्न हुए और वर रूप मे शिव जी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे।इधर शिव जी समस्त देवताओं एवं अपने गणों के साथ चैत्र शुक्ला त्रयोदशी रविवार को पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र मे बारात लेकर चल पड़े।प्रजापति दक्ष ने बारातियों का यथोचित सत्कार किया।उसके बाद शुभ मुहूर्त मे वैदिक विधि-विधान से शिव और सती का विवाह सम्पन्न हुआ।तदनन्तर बारात सहित वर-वधू की विदाई हुई।सभी देवगण अपने-अपने स्थान को गये।शिव और सती कैलास गये और सानन्द रहने लगे।

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