Saturday, 7 May 2016

कल्याणमूर्ति शिव -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          शिव जी साक्षात् कल्याणमूर्ति हैं।उनके नाम " शिव " का अर्थ ही है कल्याण अथवा कल्याण करना।इसलिए सम्पूर्ण विश्व का कल्याण करना ही उनका स्वभाव बन गया है।संसार मे जब-जब भयानक संकट की स्थिति आती है ; तब-तब शिव जी ही रक्षा करते हैं।केवल मानव समाज ही नहीं ; अपितु देव-समाज भी संकट की स्थिति मे उन्हीं को पुकारता है और वे तत्काल संकट-हरण हेतु प्रकट हो जाते हैं।
            शिव जी ने असंख्य बार सृष्टि की रक्षा की है।उनमे सर्वाधिक उल्लेखनीय कार्य विष-पान करना था।समुद्र-मन्थन करते समय महा भयानक कालकूट विष प्रकट हुआ।उसकी ज्वाला से सम्पूर्ण जगत झुलसने लगा।अतः विश्व-रक्षण हेतु सभी देवगण चिन्तित हो गये।सब लोग उससे बचने का उपाय ढूँढने लगे।किसी को कोई उपाय नहीं मिल रहा था।सब का सब किंकर्तव्य विमूढ थे।सब अपनी-अपनी जान बचाकर भागने लगे।
           कुछ देर तक विचार-विमर्श करने के बाद सभी लोग ब्रह्मा जी के पास गये और अपनी व्यथा सुनाई।ब्रह्मा जी ने कहा कि इस विपत्ति से केवल शिव जी ही बचा सकते हैं।वे ही कल्याणकारी देवता हैं।जो भी उनकी शरण मे जाता है ; वे उसकी रक्षा अवश्य करते हैं।अतः इस समय हमे भी उन्हीं की प्रार्थना करनी चाहिए।ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार देव-दानव सभी लोग शिव जी की प्रार्थना करने लगे।उनका आर्तनाद सुनकर शिव जी प्रकट हो गये।उन्होंने पूछा कि मै आप लोगों का क्या हित कर सकता हूँ।तब ब्रह्मा जी ने कालकूट विष से सृष्टि की रक्षा करने का अनुरोध किया।
          शिव जी ने सोचा कि इस समय सृष्टि की रक्षा करना ही मेरा धर्म है।अतः मुझे ही इस महाविष को पान करना चाहिए।परन्तु वह पेट मे चला गया तो अनिष्ट कर सकता है।यदि बाहर रहेगा तो सम्पूर्ण सृष्टि ही भस्म हो जायेगी।यह सोचकर उन्होंने एक ही आचमन मे उस भयानक विष को अपने कण्ठ मे धारण कर लिया।उसके प्रभाव से उनका कण्ठ नीला पड़ गया।इसीलिए वे नीलकण्ठ कहलाते हैं।
            यहाँ गम्भीरता पूर्वक विचार किया जाय तो शिव जी के अतिरिक्त कोई भी देवता नहीं है ; जो घोर विपत्ति की स्थिति मे हमारी रक्षा कर सके।एकमात्र शिव जी ही ऐसे देवता हैं ; जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करके सृष्टि-रक्षा हेतु विषपान कर लिया।इन्हीं विशेषताओं के कारण वे देवाधिदेव महादेव एवं कल्याणमूर्ति कहलाते हैं।

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