Monday, 23 May 2016

किरातावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

          सुयोधन ने जब पाण्डवों को जूए मे पराजित कर दिया तब वे द्रौपदी सहित द्वैतवन मे रहने लगे।वहाँ श्रीकृष्ण एवं व्यास जी ने उन्हें शिव जी की आराधना करने का निर्देश दिया।अतः अर्जुन इन्द्रकील पर्वत पर जाह्नवी के तट पर पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनकी उपासना करने लगे।इससे अर्जुन के शिरोभाग से तेज की ज्वाला निकलने लगी।उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र ने पहले उनकी परीक्षा ली उसके बाद उन्हें शिव-मन्त्र बतलाकर उसी का जप करने की आज्ञा दी।
             अर्जुन शिवोपासना मे पूर्णतः तल्लीन हो गये।वे एक पैर पर खड़े होकर शिव जी के पञ्चाक्षर मन्त्र का जप करते हुए घोर तप करने लगे।उसी समय दुर्योधन द्वारा भेजा गया मूक नामक दैत्य शूकर का रूप धारण कर अर्जुन का अनिष्ट करने आ गया।इधर अर्जुन भी आत्मरक्षा हेतु धनुष-बाण लेकर खड़े हो गये।इसी समय शिव जी अर्जुन की रक्षा करने ; उनकी भक्ति की परीक्षा लेने तथा मूक का वध करने के लिए किरात ( भील ) के रूप मे प्रकट हो गये।अर्जुन और शिव जी दोनो ने शूकर पर एक साथ प्रहार किया ; जिससे उसकी मृत्यु हो गयी।
             उसके शिव जी ने अपने बाण को वापस लाने के लिए एक अनुचर को भेजा।इधर अर्जुन भी अपना बाण लेने आ गये।शिव जी की लीला के कारण वहाँ केवल अर्जुन का ही बाण था।दोनो लोग उसे ही अपना बाण कहने लगे।इस विषय पर दोनो मे विवाद छिड़ गया।इसे सुनकर किरात वेशधारी शिव जी अपनी सेना सहित अर्जुन के समक्ष आ गये।दोनो मे भयानक युद्ध आरम्भ हो गया।अर्जुन ने किरात के दोनो पैर पकड़ कर घुमाना आरम्भ कर दिया।इस प्रकार अर्जुन के पराक्रम एवं भक्ति को देखकर शिव जी प्रसन्न हो गये।वे तत्काल अपने वास्तविक स्वरूप मे प्रकट हो गये।शिव जी को देखकर अर्जुन बहुत लज्जित हुए और उनसे क्षमा-याचना करने लगे।
           भक्तवत्सल शिव जी ने प्रसन्न होकर अर्जुन से वर माँगने को कहा।अर्जुन ने निवेदन किया कि आप तो अन्तर्यामी हैं।अतः स्वेच्छापूर्वक कृपा करें।शिव जी ने अर्जुन के मनोभाव के अनुरूप उन्हें पाशुपत नामक अमोघ अस्त्र प्रदान किया।फिर उनके शिर पर अपना वरद हस्त रख दिया।अर्जुन ने उनकी विधिवत स्तुति की।इसके बाद शिव जी अन्तर्धान हो गये।अर्जुन भी अपने भाइयों के पास लौट आये और सानन्द रहने लगे।इस प्रकार शिव जी का किरात अवतार हुआ था।

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