Thursday, 26 May 2016

सती-अवतार 2 -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            कल्पभेद से जगदम्बा सती के अवतार सम्बन्धी अनेक कथायें उपलब्ध हैं।एक कल्प मे वे प्रजापति दक्ष की पत्नी असिक्नी ( वीरिणी ) की पुत्री के रूप मे अवतरित हुई थीं।कुछ लोग शिवा या सती को प्रजापति दक्ष की ज्येष्ठा पुत्री मानते हैं।दूसरे लोग मझली पुत्री और कुछ लोग कनिष्ठा पुत्री मानते हैं।वास्तव मे कल्पभेद से ये तीनों मत सत्य हैं।इसे विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए।
          एक बार पत्नी सहित दक्ष ने मन ही मन जगदम्बिका शिवा का ध्यान किया।फिर भावपूर्ण वाणी से उनकी स्तुति की।इससे मातेश्वरी शिवा प्रसन्न हो गयीं।उन्होंने विचार किया कि मुझे दक्ष की पत्नी वीरिणी के गर्भ से अवतार लेना चाहिए।इस प्रकार की भावना बनाकर वे प्रजापति दक्ष के हृदय मे निवास करने लगीं।दक्ष ने शुभ मुहूर्त मे अपनी पत्नी वीरिणी मे गर्भाधान किया।अब वीरिणी के चित्त मे भी शिवा जी निवास करने लगीं।धीरे-धीरे नौ महीने का समय व्यतीत हो गया।दसवें मास मे शुभ मुहूर्त मे देवी शिवा जी अपने स्वरूप मे माता वीरिणी के समक्ष प्रकट हुईं।
            भगवती का दर्शन करते ही वीरिणी एवं दक्ष को विश्वास हो गया कि ये जगदम्बा शिवा ही हैं ; जो मेरी पुत्री के रूप मे अवतरित हुई हैं।दक्ष ने उन्हें सादर प्रणाम किया और नानाविध स्तुति आरम्भ कर दी।उसके बाद भगवती शिवा ने शिशु रूप धारण कर शैशव-लीला प्रारम्भ कर दी।चारो ओर प्रसन्नता का वातावरण छा गया।नित्य नवीन मंगलकृत्य होने लगे।उस समय उनका नाम उमा रखा गया।धीरे-धीरे वे बढ़ने लगीं।जब वे कुछ बड़ी हुईं तब शिवाराधन मे संलग्न हो गयीं।वे सदैव शिव जी का ही स्मरण करती रहती थीं।

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