वर्तमान मन्वन्तर के मनु का नाम वैवस्वत मनु है।इन्हें श्राद्धदेव भी कहा जाता है।इनके इक्ष्वाकु आदि नौ पुत्र थे।उन्हीं मे से एक पुत्र का नाम " नभग " था।उन्हीं को ज्ञान प्रदान करने के लिए भगवान शिव जी ने कृष्णदर्शन अवतार लिया था।
नभग जब विद्याध्ययन हेतु गुरुकुल मे निवास कर रहे थे ; तभी इक्ष्वाकु भाइयों ने पिता की सम्पत्ति का बँटवारा किया।किन्तु उन लोगों ने नभग को हिस्सा नही दिया।नभग जब विद्याध्ययन कर घर आये तो अपना हिस्सा माँगा।उस समय भाइयों ने कहा कि सम्पत्ति-विभाजन के समय तुम नहीं थे।इसलिए तुम्हारा हिस्सा लगाना भूल गये।अब पिता जी को अपने हिस्से के रूप मे ले लो।
दुःखी नभग अपने पिता के पास और उन्हें सम्पूर्ण वृत्तान्त से अवगत कराया।पिता ने कहा कि भाइयों ने तुम्हें ठगने के लिए यह बात कही है।फिर भी मै तुम्हारी जीविका के लिए एक उपाय बतलाता हूँ।इस समय आंगिरस गोत्रीय ब्राह्मण एक विशाल यज्ञ कर रहे हैं।परन्तु वे प्रत्येक छठवें दिन के कार्य मे त्रुटि कर जाते हैं।तुम उन्हें उस अवसर पर विश्वेदेव सम्बन्धी दो सूक्त बतला दिया करो।जब यज्ञ सम्पन्न हो जायेगा ; तब वे यज्ञावशिष्ट धन तुम्हें दे देंगे।
पिता जी के निर्देशानुसार नभग वहाँ गये और उस कार्य को सकुशल सम्पन्न किया।यज्ञ सम्पन्न होने पर ब्राह्मणगण जब स्वर्गलोक जाने लगे तब सम्पूर्ण यज्ञावशिष्ट धन नभग को दे दिया।नभग उस धन को संकलित कर रहे थे ; तभी शिव जी कृष्णदर्शन रूप मे प्रकट हो गये।उन्होंने कहा कि तुम इस धन को क्यों ले रहे हो ? यह तो मेरे अधिकार की सम्पत्ति है।इस बात को सुनकर नभग जी अवाक् रह गये।शिव जी ने कहा कि इस विषय मे तुम्हारे पिता ही साक्ष्य हैं।उन्हीं से पूछ लो।वे जो निर्णय देंगे ; उसे हम दोनों मानेंगे।
नभग अपने के पास आये और उस विषय मे पूछा।श्राद्धदेव ने शिव जी का ध्यान किया और नभग को बतलाया कि वे साक्षात् शिव जी हैं।यज्ञावशिष्ट धन पर उन्हीं का अधिकार होता है।वे तुम पर कृपा करने के लिए ही प्रकट हुए हैं।तुम उन्हें ही प्रसन्न करो।नभग वापस आये और उन्हें प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे।शिव जी प्रसन्न हो गये।उन्होंने नभग को ब्रह्मतत्त्व का ज्ञान और सम्पूर्ण धन सहर्ष प्रदान कर दिया।इसके बाद वे अन्तर्धान हो गये।नभग अपने पिता के पास चले आये।उन्होंने दीर्घकाल तक सुखोपभोग कर अन्त मे शिवधाम को प्राप्त किया।
Thursday, 19 May 2016
कृष्णदर्शन अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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