शिव जी समस्त मंगलों के मूल एवं अमंगलों के उन्मूलक हैं।उनका उदात्त चरित्र सम्पूर्ण विश्व के लिए मंगलकारी है।वे सभी के उद्धारक एवं प्रेरणास्रोत हैं।स्वयं निर्वस्त्र एवं गृहविहीन होते हुए भी अपने भक्तों को अतुल ऐश्वर्य एवं समृद्धि प्रदान करते हैं।श्मशान-सेवी एवं भस्मधारी होते हुए भी सम्पूर्ण त्रैलोक्य के स्वामी हैं।अमंगल-वेशधारी होते हुए भी परम मंगलप्रदाता हैं।
हमारे धर्मशास्त्रों मे अनेक देवी-देवताओं की कृपावत्सलता का वर्णन हुआ है किन्तु शिव जी के समान मंगलकर्ता देवता कोई भी नहीं है।वे अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए अपने जीवन को भी अर्पित कर देते हैं।समुद्र-मन्थन से निकलने वाले महाविष की प्रचण्ड ज्वाला से जब सम्पूर्ण सृष्टि दग्ध हो रही थी ; तब भगवान शिव ने ही उसका पानकर सबकी रक्षा की थी।गंगावतरण प्रसंग मे गंगा जी स्वर्ग से तो चल पड़ीं किन्तु पृथ्वी पर उन्हें सम्हालने वाला कोई नहीं था।उस समय शिव जी ने ही उनके प्रचण्ड वेग को रोककर भारतवासियों को गंगा की अमृतधारा प्रदान की थी।
देव ; दानव ; मानव सभी लोग अपने कल्याण हेतु शिव जी की ही उपासना करत हैं।भगवान परशुराम ने शिवोपासना द्वारा ही सर्वस्व प्राप्त किया था।सीता जी ने शिव-धनुष की सेवा-सुश्रूषा द्वारा उनकी अनुकम्पा प्राप्त की और गिरिजा माता की आराधना से श्रीराम को वर रूप मे प्राप्त किया था।समुद्र तट पर श्री रामेश्वर जी की स्थापना एवं पूजन द्वारा ही श्रीराम ने त्रैलोक्य-विजयी रावण पर विजय प्राप्त की थी।श्रीकृष्ण ने भी अपने दीक्षागुरु उपमन्यु के निर्देशानुसार शिवोपासना द्वारा ही सफलता प्राप्त की थी।
पुराणों मे इस प्रकार के असंख्य आख्यान उपलब्ध हैं ; जिनके द्वारा शिव जी के मंगलदाता स्वरूप का परिचय प्राप्त होता है।अतः समस्त कल्यामार्थियों को अभीष्टसिद्धि हेतु मंगलमूर्ति शिव के चरणार्विन्दों मे मन लगाना नितान्त आवश्यक है।उनकी कृपा से मंगल-प्राप्ति सुनिश्चित है।
Monday, 2 May 2016
मंगलमूर्ति शिव -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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