द्वादश ज्योतिर्लिंगों के क्रम मे श्री केदारेश्वर जी की गणना पञ्चम स्थान पर की जाती है।ये पर्वतराज हिमालय के केदार नामक उच्च शिखर पर विराजमान हैं।इस समय यह स्थान उत्तराखण्ड प्रान्त के रुद्र प्रयाग जनपद मे स्थित है।पहाड़ी मार्ग होने के कारण यहाँ पहुँचना तो कठिन है किन्तु इनकी महत्ता बहुत अधिक है।इनके प्रादुर्भाव की कथा बहुत रोचक एवं शिक्षाप्रद है।
प्राचीन काल मे भगवान विष्णु के नर-नारायण नामक दो अवतार हुए थे।वे दोनो बदरिकाश्रम मे प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर पूजन करते थे।शिव जी नित्य उनके द्वारा निर्मित शिवलिंग मे आकर पूजन ग्रहण करते थे।एक दिन शिव जी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये।उन्होंने नर-नारायण से कहा कि मै तुम दोनो की आराधना से पूर्णतया सन्तुष्ट हूँ।अतः मनोवाँछित वर माँग लो।नर-नारायण ने कहा कि यदि आप प्रसन्न हैं और वर देना चाहते हैं तो अपने स्वरूप से यहीं स्थित हो जायें।
शिव जी अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।उन्होंने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और वहीं पर ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रतिष्ठित हो गये।उसी समय से वे केदारेश्वर नाम से प्रसिद्ध हो गये।उनके दर्शन एवं पूजन की असीम महत्ता है।जो व्यक्ति भक्तिभाव से उनका पूजन करता है ; वह समस्त दुःखों से मुक्त होकर मनोवाँछित फल प्राप्त करता है।जो उनका पूजन कर वहाँ का जल पीता है ; वह जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।यदि कोई व्यक्ति वहाँ की यात्रा करते समय मृत हो जाय तो वह भी मोक्ष को प्राप्त हो जाता है।इसलिए समस्त आस्तिक जनों को एक बार उनका दर्शन अवश्य करना चाहिए।
Thursday, 12 May 2016
श्रीकेदारेश्वर -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment