महर्षि उपमन्यु जी व्याघ्रपाद मुनि के पुत्र थे।वे बचपन मे अपनी माता के साथ ननिहाल मे रहते थे।उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।एक दिन उन्हें पीने के लिए बहुत कम दूध मिला।वे अपनी माता से और अधिक दूध माँगने लगे।माता ने कुछ बीजों को पीस कर घोल बनाया और उन्हें पीने को दिया।उपमन्यु जान गये कि यह दूध नहीं है।वे पुनः रोने लगे।इससे माता को घोर कष्ट हुआ।उन्होंने समझाया कि शिव जी की कृपा के बिना किसी को भी दूध नहीं मिलता है।अतः उन्हीं से दूध की याचना करो।
इस प्रकार माता की बात सुनकर उपमन्यु ने शिव जी की आराधना करने का निर्णय लिया।वे हिमालय पर्वत पर केवल वायु पीकर कठोर तप मे संलग्न हो गये।वे प्रतिदिन पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन एवं पञ्चाक्षर मंत्र " ऊँ नमः शिवाय " का जप करने लगे।उनकी तपस्या से सम्पूर्ण त्रिभुवन संतप्त हो उठा।तब देवताओं के अनुरोध पर शिव जी उनकी परीक्षा लेने के लिए चल पड़े।उस समय शिव जी ने सुरेश्वर इन्द्र का ; पार्वती जी ने इन्द्राणी का ; नन्दीश्वर ने ऐरावत का और अन्य गणों ने सम्पूर्ण देवताओं का रूप धारण किया।
वे सभी उपमन्यु के पास गये।सुरेश्वर रूपधारी शिव ने उपमन्यु से वर माँगने को कहा।उपमन्यु ने शिवभक्ति माँगी।इसके बाद सुरेश्वर ने शिव जी की निन्दा करनी आरम्भ कर दी।इस पर उपमन्यु ने क्रुद्ध होकर सुरेश्वर पर अघोरास्त्र चला दिया।उसे नन्दी ने रोक लिया।इसके बाद अपने को जलाने के लिए जब अग्नि की धारणा की तब उसे शिव जी ने शान्त कर दिया।उनकी अनन्य भक्ति को देखकर शिव जी प्रसन्न हो गये।बाद मे सभी लोग अपने-अपने रूप मे प्रकट हो गये।
शिव जी ने उन्हें अपना पुत्र मानकर सनातन कुमारत्व प्रदान किया।उसके बाद उन्हें असंख्य वरदान प्रदान कर अपना परम पद भी अर्पित कर दिया।साथ ही उनके आश्रम पर नित्य निवास करने का वचन भी दिया।माता पार्वती ने उन्हें पुत्र कह कर अक्षय कुमार पद प्रदान किया।इस प्रकार उत्तमोत्तम वर प्राप्त कर उपमन्यु अपने घर चले आये और शिव जी की कृपा से अत्यन्त सुखी तथा पूज्य बन गये।
Sunday, 22 May 2016
सुरेश्वरावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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