शास्त्रों मे अनेक देवी-देवताओं की उपासना करने का उल्लेख हुआ है।किन्तु गम्भीरता पूर्वक विचार करें तो ज्ञात होता है कि वे सभी शिव जी के ही स्वरूप हैं।शिव जी ने ही सृष्टि की रचना ; स्थिति एवं लय के लिए क्रमशः ब्रह्मा ; विष्णु एवं रुद्र का रूप धारण किया है।बाद मे राम ; कृष्ण आदि के रूप मे भगवान विष्णु जी का अवतार हुआ।इस दृष्टि से समस्त देवी-देवताओं के मूल तो शिव ही हैं।जिस प्रकार जड़ मे जल डालने से सम्पूर्ण वृक्ष हरा-भरा रहता है।उसी प्रकार भेदबुद्धि से रहित होकर शिव जी की आराधना करने से केवल शिव ही नहीं ; अपितु समस्त देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं।यहाँ किसी देवी या देवता से कोई विरोध नहीं है ; किन्तु रुचि एवं सुविधा की दृष्टि से शिव जी की आराधना विशेष श्रेयस्कर है।
शिव जी अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।वे आशुतोष एवं अवढर दानी हैं।वे स्वल्पातिस्वल्प पूजन से ही सन्तुष्ट हो जाते हैं।जो व्यक्ति उनकी भक्ति मे तत्पर रहते हैं ; जिनके चित्त उनके समक्ष प्रणत रहते हैं और जो सदैव उन्हीं के चिन्तन मे संलग्न रहते हैं ; वे कभी भी दुःखी नही होते हैं।परन्तु जो मूढ पुरुष दुर्लभ मानव-जन्म पाकर भी भगवान शिव की आराधना नहीं करते हैं ; उनका जन्म ही निष्फल हो जाता है।अतः जो पिनाकपाणि शिव जी की आराधना करते हैं ; उन्हीं का जीवन सफल है।वे ही कृतार्थ एवं श्रेष्ठ मानव कहलाने के अधिकारी हैं।
शिव-पूजन के लिए केवल पुरुष ही नहीं ; बल्कि स्त्रियाँ भी पूर्ण अधिकारिणी हैं।इसलिए प्रत्येक नर-नारी को सम्पूर्ण कल्याण की प्राप्ति के लिए सब कुछ छोड़कर केवल शिव जी मे ही मन लगाकर उनकी आराधना करनी चाहिए।उनकी आराधना से सभी की मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं।इसमे कोई सन्देह नहीं है।
यह जीवन नाशवान है।वह बहुत तीव्र गति से व्यतीत हो रहा है।युवावस्था का गमन एवं रोगों का आगमन हो रहा है।इसलिए जब तक जरावस्था का आक्रमण नहीं होता और इन्द्रियाँ शिथिल नहीं होती हैं ; तब तक भगवान शिव जी की आराधना अवश्य करनी चाहिए।अन्यथा पछताना पड़ेगा।इस संसार मे शिव जी की आराधना के समान अन्य कोई धर्म नहीं है -
न शिवार्चनतुल्योऽस्ति धर्मोऽन्यो भुवनत्रये।
Thursday, 5 May 2016
शिवाराधन -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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