विदर्भ देश मे सत्यरथ नामक एक शिवभक्त राजा राज्य करते थे।एक बार शाल्व देश के राजाओं ने उनकी राजधानी पर आक्रमण कर दिया।दोनो पक्षों मे भयानक युद्ध हुआ।अन्त मे राजा सत्यरथ वीरगति को प्राप्त हुए।उनकी महारानी किसी प्रकार बचकर बाहर निकल गयीं।वे उस समय गर्भवती थीं।अतः वे भगवान शिव जी के चरणार्विन्दों का स्मरण करती हुई एक सरोवर के तट पर स्थित वृक्ष की छाया मे बैठ गयीं।वहीं उन्होंने एक दिव्य बालक को जन्म दिया।
थोड़ी देर बाद रानी को प्यास लग गयी।वे पानी पीने के लिए सरोवर मे गयीं ; तभी एक ग्राह ने उन्हें निगल लिया।इधर मातृ-पितृ विहीन शिशु करुण क्रन्दन करने लगा।इसी समय शिव जी आ गये और उसकी सुरक्षा करने लगे।उसी समय एक विधवा ब्राह्मणी अपने एक वर्षीय बालक को गोद मे लिए हुए आ गयी।उसने करुण क्रन्दन करते हुए नवजात शिशु को देखा तो उसके हृदय मे मातृत्व भाव जग उठा।वह उसका पालन-पोषण करने के लिए लालायित हो गयी।तभी शिव जी सन्यासी भिक्षु के रूप मे आ गये।उन्होंने ब्राह्मणी को उस बच्चे का परिचय दिया।साथ ही उसे अपने स्वरूप का दर्शन भी दिया।
ब्राह्मणी उस बच्चे को लेकर अपने घर " एकचक्रा " ग्राम मे चली गयी।उसने अपने पुत्र के साथ उस राजकुमार बालक का पालन-पोषण किया।माता की प्रेरणा से दोनो बच्चे भी शिवाराधन मे लगे रहते थे।एक दिन दोनो बालक वन मे भ्रमण करने गये।वहाँ उस राजकुमार बालक का विवाह एक गन्धर्व कन्या के साथ हो गया।बाद मे वह धर्मगुप्त नाम से विदर्भ देश का शासक बना।उसकी माता भी राजमाता पद पर प्रतिष्ठित हुई।उसने चिरकाल तक राजोचित सुख का भोग कर अन्त मे शिवलोक को प्राप्त किया।
Saturday, 21 May 2016
भिक्षुवर्यावतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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