प्राचीन काल मे भद्रायु नामक एक महा प्रतापी राजा थे।उनकी पत्नी का नाम कीर्तिमालिनी था।वे दोनो शिव जी के अनन्य भक्त थे।एक बार वे वन मे विहार करने गये।उसी समय शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक लीला रच दी।
शिव जी ब्राह्मण के रूप मे और पार्वती जी ब्राह्मणी के रूप मे प्रकट हुईं।उन्होंने एक मायामय व्याघ्र की रचना की और उसके भय से रोते-चिल्लाते हुए दोनो भागने लगे।व्याघ्र उनका पीछा कर रहा था।वे भाग कर राजा के पास गये और अपनी रक्षा के लिए निवेदन किया।राजा ने जैसे ही धनुष-बाण उठाया ; वैसे ही व्याघ्र ने ब्राह्मणी को दबोच लिया।राजा ने व्याघ्र पर असंख्य प्रहार किये किन्तु उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।वह ब्राह्मणी को घसीटता हुआ बहुत दूर तक चला गया।
इस घटना से ब्राह्मण बहुत दुःखी हुआ।उसने राजा को धिक्कारते हुए कहा कि शरणागत की रक्षा करना राजा का परम धर्म है।उसकी रक्षा प्राणपण से करनी चाहिए।यदि वह पीड़ितों की रक्षा करने मे समर्थ नहीं है तो उसका जीवित रहना व्यर्थ है।इस प्रकार धिक्कारे जाने पर राजा ने सोचा कि अब और अधिक निन्दित होने की अपेक्षा प्राणोत्सर्ग करना ही श्रेयस्कर होगा।यह सोचकर उसने ब्राह्मण से कहा कि अब यह राज्य ; रानी ; धन और मेरा शरीर आपके अधीन है।आपकी जैसी आज्ञा हो मै वैसा सी करूँ।ब्राह्मण ने कहा कि मुझे तुम्हारे राज्य ; धन एवं शरीर की आवश्यकता नहीं है।केवल अपनी पत्नी ही मुझे दे दो।
यह बात राजा को अच्छी नहीं लगी।उसने डाँटते हुए कहा कि आपकी यह बात ब्राह्मणोचित नहीं है।परस्त्री का स्पर्श भी महापाप है।ब्राह्मण ने कहा कि मै अपनी तपस्या से इस पाप को दूर कर लूँगा।राजा विवश था।उसने अपनी पत्नी ब्राह्मण को सौंप दी और स्वयं अग्नि मे प्रवेश करने के लिए उद्यत हुआ।उसी समय पार्वती सहित शिव जी अपने वास्तविक स्वरूप मे प्रकट हो गये।उन्होंने समझाया कि हे राजन् ! मै तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।तुम उसमे सफल हो गये हो।इसलिए अब मनोवाँछित वर माँगो।राजा ने कहा कि आपका दर्शन हो गया है।अब इससे बढ़कर दूसरा वर क्या होगा ?
रानी ने अपने माता-पिता के लिए शिव-धाम-प्राप्ति का वर माँगा।उसे शिव जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।इसके बाद शिव एवं पार्वती अन्तर्धान हो गये।राजा-रानी ने दीर्घकाल तक साँसारिक सुखों का भोग करने के बाद अन्त मे शिवधाम को प्राप्त किया।
Thursday, 19 May 2016
द्विजेश्वर अवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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