शिव जी के असंख्य मन्त्रों मे ओंकार का महत्त्व सर्वोपरि है।यह महा मंगलकारी मन्त्र है।यह उनके स्वरूप का बोध कराने वाला है।यह शिव जी का वाचक है और शिव जी वाच्य हैं।इस वाचक-वाच्य सम्बन्ध के कारण इसे शिव जी का साक्षात् स्वरूप माना जाता है।
ओंकार के पाँच अवयव हैं।इन सबका प्राकट्य भगवान शिव जी के मुखारविन्द से हुआ है।उनके उत्तरवर्ती मुख से अकार का ; पश्चिम मुख से उकार का ; दक्षिण मुख से मकार का ; पूर्व मुख से विन्दु का और मध्य मुख से नाद का प्राकट्य हुआ है।इन सभी अवयवों से एकीभूत होकर वह " ऊँ " रूपी एक अक्षर हो गया।अल्पाक्षर होते हुए भी यह मन्त्र अत्यन्त व्यापक है।यह नाम-रूपात्मक जगत् ; वेद-शास्त्र एवं स्त्री-पुरुष आदि सब कुछ इसी से व्याप्त हैं।यह महामन्त्र शिव और शक्ति दोनों का बोधक है।इसी से पञ्चाक्षर महामन्त्र की उत्पत्ति हुई है ; जो शिव जी के सकल स्वरूप का बोधक है।
यह मन्त्र अत्यन्त प्रभावशाली है।इससे मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।इसका जप करने से मनुष्य को भोग और मोक्ष दोनो की प्राप्ति हो जाती है।यदि आर्द्रा नक्षत्र से युक्त चतुर्दशी को इसका एक बार भी जप किया जाय तो अक्षय फल की प्राप्ति होती है।सूर्य संक्रान्ति से युक्त महा आर्द्रा नक्षत्र मे एक बार भी इसका जप कोटि गुना फलदायक होता है।मृगशिरा नक्षत्र का अन्तिम भाग और पुनर्वसु का आदि भाग पूजन ; हवन और तर्पण के लिए आर्द्रा के समान ही मान्य है।अतः समस्त आस्तिक जनों को इस अवसर का लाभ अवश्य उठाना चाहिए।
Monday, 2 May 2016
ओंकार ( ऊँ ) -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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