द्वादश ज्योतिर्लिंगों मे श्रीमहाकालेश्वर की गणना तृतीय स्थान पर की जाती है।ये उज्जैन के महाकाल वन मे पुण्यसलिला शिप्रा नदी के तट पर प्रतिष्ठित हैं।अन्य ज्योतिर्लिंगो की अपेक्षा इनकी विशेष ख्याति है।इनके प्राकट्य की कथा बहुत मनोरम एवं शिक्षाप्रद है।
प्राचीन काल मे अवन्तिपुरी ( उज्जैन ) मे वेदप्रिय नामक एक शिवभक्त ब्राह्मण रहते थे।उनके चार पुत्र थे ; जिनके नाम देवप्रिय ; प्रियमेधा ; सुकृत और सुव्रत थे।उन चारों महापुरुषों के कारण अवन्तिपुरी ब्रह्मतेज से परिपूर्ण हो गयी थी।उसी समय दूषण नामक एक धर्मद्वेषी असुर ने अवन्तिपुरी पर आक्रमण कर दिया।उन चारों ब्राह्मण-पुत्रों ने नगर-वासियों को आश्वासन दिया कि आप लोग भक्तवत्सल भगवान शिव जी पर भरोसा रखें।इस प्रकार सबको समझा कर स्वयं शिव जी का ध्यान करने लगे।
वह असुर उन ब्राह्मणों के पास आया और उन पर प्रहार करना चाहा।उसी समय ब्राह्मणों द्वारा पूजित शिवलिंग के स्थान पर एक विशाल गड्ढा हो गया।उस गड्ढे से शिव जी प्रकट हो गये।उन्होंने दैत्यों से कहा कि मै तुम्हारे सदृश दुष्टों के लिए महाकाल हूँ।इतना कहकर शिव जी ने उन दैत्यों का संहार कर दिया और ब्राह्मणों से वर माँगने को कहा।
उन ब्राह्मणों ने शिव जी को प्रणाम कर कहा कि हे प्रभो हमे संसार-सागर से मोक्ष प्रदान करें और जनसाधारण की रक्षा के लिए आप सदैव यहीं विराजमान रहें।शिव जी उसी गड्ढे मे ज्योतिर्लिंग रूप मे प्रतिष्ठित हो गये।वही शिवलिंग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग रूप से प्रसिद्ध हैं।वे अत्यन्त दयालु एवं भक्तवत्सल हैं।उनका दर्शन करने वाला व्यक्ति समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है।उनकी उपासना से व्यक्ति की समस्त मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं।अन्त मे उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
Wednesday, 11 May 2016
श्रीमहाकालेश्वर -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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