Tuesday, 3 May 2016

प्रणव-मन्त्र के भेद -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            शिव जी के असंख्य मन्त्रों मे प्रणव का महत्त्व सर्वोपरि है।इसके दो भेद होते हैं -- स्थूल एवं सूक्ष्म।इनमे से जो एक अक्षर वाला " ऊँ " है ; उसे सूक्ष्म प्रणव कहा जाता है। " नमः शिवाय " इस पञ्चाक्षर मन्त्र को स्थूल प्रणव कहा जाता है। " ऊँ " मे पाँचों अक्षर व्यक्त नहीं हैं।इसीलिए इसे सूक्ष्म कहते हैं।जब कि  " नमः शिवाय " मे पाँचो अक्षर सुस्पष्ट रूप से व्यक्त हैं।इसलिए इसे स्थूल प्रणव कहा जाता है।
           शास्त्रीय मान्यतानुसार जीवन-मुक्त पुरुषों को सूक्ष्म प्रणव का जप करना चाहिए।वही उनके लिए समस्त साधनों का सार है।वह अपने शरीर का विलय होने तक सूक्ष्म प्रणव का जप करता है।साथ ही अर्थभूत परमात्म तत्त्व का अनुसंधान भी करता है।जब शरीर नष्ट हो जाता है ; तब वह पूर्ण ब्रह्मस्वरूप शिव को प्राप्त कर लेता है।जो व्यक्ति अर्थ का अनुसंधान न करके केवल मन्त्र का जप करता है ; उसे निश्चित रूप से योग की प्राप्ति हो जाती है।जो व्यक्ति छत्तीस करोड़ सूक्ष्म प्रणव मन्त्र का जप कर लेता है ; उसे मोक्ष की प्राप्ति अवश्य हो जाती है।
सूक्ष्म प्रणव के भेद --
           सूक्ष्म प्रणव के भी दो भेद होते हैं -- ह्रस्व एवं दीर्घ।
दीर्घ --
            अकार ; उकार ; मकार ; विन्दु ; नाद ; शब्द ; काल और कला से युक्त प्रणव को दीर्घ प्रणव कहा जाता है।वह केवल योगियों के हृदय मे स्थित रहता है।इसका जप केवल निवृत्त पुरुषों को ही करना चाहिए।निवृत्त पुरुषों मे निष्काम भाव से शास्त्र-विहित कर्मों का अनुष्ठान करने वाले आते हैं।
ह्रस्व --
          " अ उ म " इन तीन तत्त्वों से युक्त जो मकार पर्यन्त " ओम् " है ; उसकी को ह्रस्व प्रणव कहा जाता है।इसमे " अ " शिव है ; " उ " शक्ति है तथा मकार इन दोनों की एकता है।इस प्रकार यह त्रितत्त्वस्वरूप है।इसे ऐसा ही समझ कर जप करना चाहिए।ह्रस्व प्रणव का जप प्रवृत्तिमार्गी लोगों को करना चाहिए।इसमे उन लोगों की गणना की जाती है ; जो किसी कामना की पूर्ति के लिए कर्मों के अनुष्ठान मे संलग्न रहते हैं।जो लोग प्रवृत्ति-निवृत्ति से मिश्रित भाव वाले होते हैं ; उन्हें स्थूल प्रणव का जप करना चाहिए।

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