शिव जी के मन्त्रों मे प्रणव मन्त्र का असीम महत्त्व है।यह दो प्रकार का होता है।इनमे से " ऊँ " को सूक्ष्म तथा " नमः शिवाय " को स्थूल प्रणव कहा जाता है।ये दोनो मन्त्र बहुत प्रभावशाली एवं पुण्यदायक हैं।इनके जप से अनन्त पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
यदि कोई व्यक्ति नौ करोड़ प्रणव मन्त्र का जप कर ले तो वह पूर्ण शुद्ध हो जाता है।इसके बाद भी नौ करोड़ जप करने से व्यक्ति पृथ्वी तल पर विजय प्राप्त कर लेता है।इसके पश्चात् पुनः नौ करोड़ जप करने से मनुष्य जल तत्त्व पर विजय प्राप्त कर लेता है।अगले नौ करोड़ जप करने से अग्नि तत्त्व पर विजय प्राप्त हो जाती है।उसके बाद भी नौ करोड़ जप किया जाय तो वायु तत्त्व पर विजय प्राप्त हो जाती है।पुनः नौ करोड़ जप करने से आकाश तत्त्व पर अधिकार प्राप्त हो जाता है।
इसी प्रकार पुनः नौ करोड़ जप करने से गन्ध तत्त्व पर विजय प्राप्त हो जाती है।इसके बाद नौ करोड़ जप करने वाला व्यक्ति रस तत्त्व पर अधिकार कर लेता है।पुनः नौ करोड़ जप करने से रूप तत्त्व पर आधिपत्य स्थापित हो जाता है।इसके बाद नौ करोड़ जप किया जाय तो स्पर्श तत्त्व पर विजय प्राप्त हो जाती है।पुनः नौ करोड़ जप करने वाला व्यक्ति शब्द तत्त्व पर अधिकार कर लेता है।इसके बाद नौ करोड़ जप किया जाय तो अहंकार पर भी विजय प्राप्त हो जाती है।
इस प्रकार बारह बार नौ - नौ करोड़ प्रणव जप करने से कुल 108 करोड़ जप हो जाता है।जो व्यक्ति इतनी संख्या मे जप कर ले तो वह उत्कृष्ट बोध को प्राप्त करके शुद्ध योग को प्राप्त कर लेता है।जो व्यक्ति शुद्ध योग को प्राप्त कर लेता है ; वह जीवन-मुक्त हो जाता है।जो मनुष्य सदैव प्रणव का जप करता है और प्रणव रूपी शिव का ध्यान करता है ; वह समाधिस्थ होकर साक्षात् शिव ही बन जाता है।अतः समस्त आस्तिक जनों को प्रणव जप करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए।
Wednesday, 4 May 2016
प्रणव जप का फल -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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