शिव जी भगवान श्री राम के अनन्य भक्त हैं।वे सदैव उनकी सेवा एवं हित करने मे तत्पर रहते हैं।एक बार शिव जी को विष्णु के मोहिनी स्वरूप का दर्शन हुआ।उन्हें देखते हुए शिव जी कामातुर हो उठे।यद्यपि वे अपनी काम-भावना को शान्त कर सकते थे ; किन्तु रामकार्य की सिद्धि के लिए अपना वीर्यपात कर दिया।
इसके बाद सप्तर्षियों ने उस वीर्य को पत्रपुटक मे सुरक्षित रख दिया।फिर उचित समय पर उसे गौतम-कन्या अञ्जनी के गर्भ मे कर्णमार्ग के द्वारा स्थापित कर दिया।समय आने पर उस गर्भ से शिव जी ने महापराक्रमी वानर के रूप मे अवतार लिया।उस समय उनका नाम हनुमान रखा गया।
हनुमान जी ने शैशव काल से ही अनेक विचित्र लीलायें आरम्भ कर दीं।एक बार उन्होंने उदय होते हुए सूर्य के बिम्ब को देखा।उन्होंने समझा कि यह कोई फल है।अतः उसे प्राप्त करने के लिए उन्होंने आकाश मे छलांग लगा दी और सूर्य को निगल लिया।फलतः चारों ओर हाहाकार मच गया।देवताओं ने उनकी प्रार्थना की तब उन्होंने उगल दिया।उस समय उन्हें अनेक वरदान प्राप्त हुए।बाद मे हनुमान जी ने सूर्यदेव से विद्याध्ययन भी किया।गुरुदक्षिणा के रूप मे सूर्यदेव ने हनुमान जी को अपने अंश से प्रादुर्भूत सुग्रीव की सेवा मे भेज दिया।
हनुमान जी का अवतार श्रीराम की सेवा के लिए ही हुआ था।इस सन्दर्भ मे उन्होंने अनेक मनोहर लीलायें कीं।उन्होंने असुरों का मानमर्दन कर भूतल पर श्रीराम भक्ति की स्थापना की और स्वयं भक्ताग्रगण्य होकर सीता राम को सुख प्रदान किया।वे लक्ष्मण के प्राणदाता ; देवताओं के गर्वहारी एवं भक्तों के उद्धारक हैं।वे सदैव श्रीराम कार्य मे ही संलग्न रहते हैं।इसीलिए श्रीरामदूत के रूप मे विख्यात हैं।हनुमान जी का चरित्र अत्यन्त पुण्यदायक है।इसे पढ़ने ; सुनने और सुनाने से मनुष्य को धन-धान्य ; दीर्घायु-आरोग्य एवं सम्पूर्ण अभीष्टों की प्राप्ति होती है।वह इस लोक मे समस्त सुखों को भोगकर अन्त मे मोक्ष को प्राप्त होता है।
Saturday, 30 April 2016
शिव जी का हनुमदवतार -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी
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