Wednesday, 25 May 2016

शिव एवं शक्ति का प्राकट्य -- डाॅ कृष्ण पाल त्रिपाठी

            सृष्टि-संरचना के पूर्व समस्त चराचर जगत् नष्ट हो गया था।सर्वत्र अन्धकार ही अन्धकार व्याप्त था।सूर्य और चन्द्रमा भी नहीं थे।जल ; वायु ; पृथ्वी और अग्नि की भी सत्ता नहीं थी।एकमात्र आकाश ही शेष था।किसी प्रकार के तेज ; शब्द ; स्पर्श ; गन्ध ; रूप आदि की अभिव्यक्ति नहीं होती थी।उस समय एकमात्र " सत् " ही शेष था।
            इस सत् को योगीजन अपने हृदयाकाश के अन्दर निरन्तर देखते रहते हैं।वह सत्तत्त्व मन और वाणी का विषय नहीं है क्योंकि वह नाम ; रूप ; रंग ; आकार आदि से सर्वथा शून्य है।वह सत्य ; ज्ञानस्वरूप ; अनन्त ; परमानन्दमय ; परमज्योतिःस्वरूप ; अप्रमेय ; आधार-रहित ; निर्विकार ; निराकार ; निर्गुण ; योगिगम्य ; सर्वव्यापी ; निर्विकल्प ; मायाशून्य ; अद्वितीय ; अनादि ; अनन्त तथा चिन्मय है।
           कालान्तर मे उस एकमात्र सत् या परमब्रह्म ने द्वितीय की इच्छा प्रकट की।उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ।तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से मूर्तिरूप धारण किया।वह सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से सम्पन्न ; सर्वज्ञानमय ; शुभस्वरूप ; सर्वव्यापी ; सर्वस्वरूप ; सर्वदर्शी ; सर्ववन्द्य ; सर्वाद्य एवं सर्वप्रद था।इसके बाद वह अद्वितीय ब्रह्म अन्तर्हित हो गया।जो मूर्ति रहित परम ब्रह्म है ; उसी की मूर्ति या साकार स्वरूप को भगवान सदाशिव कहा जाता है।वे ही ईश्वर हैं।उन्हें ही परमपुरुष ; ईश्वर ; शिव ; शम्भु ; महेश्वर आदि कहा जाता है।
            उन शिव जी के मस्तक पर आकाश गंगा और भालप्रदेश मे बाल-चन्द्रमा सुशोभित हैं।उनके पाँच मुख हैं और प्रत्येक मुख मे तीन-तीन नेत्र विराजमान हैं।वे सदैव प्रसन्नचित्त रहने वाले हैं।वे दश भुजाओं वाले एवं त्रिशूलधारी हैं।उनका शरीर कर्पूर सदृश श्वेत वर्ण का है।उनके समस्त अंगों मे सुन्दर भस्म सुशोभित रहती है।उन्होंने अपने आवास के लिए जिस शिवलोक नामक उत्तम क्षेत्र का निर्माण किया ; उसे ही काशी कहते हैं।
            इसके बाद उन सदाशिव ने अपने विग्रह से स्वयं ही एक स्वरूपभूता शक्ति की सृष्टि की ; जिसे अम्बिका कहा जाता है।उन्हीं को प्रकृति ; सर्वेश्वरी ; त्रिदेवजननी ; नित्या और मूलकारण भी कहा जाता है।वे अष्टभुजी ; शुभलक्षणा ; अनुपम कान्तियुक्ता ; सर्वाभरण-भूषिता ; शस्त्रास्त्र-धारिणी ; कमलनयनी ; अचिन्त्य तेजसम्पन्ना ; सर्वयोनि और उद्यमशीला हैं।एकाकिनी होने पर भी वे अपनी माया से अनेक हो जाती हैं।कालान्तर मे इन्हीं शिव-शक्ति की इच्छानुसार ही विष्णु ; ब्रह्मा आदि देवों की उत्पत्ति और बाद मे सृष्टि की संरचना हुई थी।
           

1 comment:

  1. कालान्तर मे इन्हीं शिव-शक्ति की इच्छानुसार ही विष्णु; ब्रह्मा आदि देवों की उत्पत्ति और बाद मे सृष्टि की संरचना हुई थी।
    विष्णु; ब्रह्मा के साथ महेश की उत्पत्ति होती है,क्योंकि जो शिव है वो महेश से अलग है और ब्रह्मा,विष्णु,महेश का पिता है और शक्ति,दुर्गा माता है जिसे अष्टंंगी भी कहते हैं क्योंकि शिव और शक्ति पति पत्नि हैं

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