सनातन परम्परा मे भगवान शंकर के पूर्णावतार कालभैरव का महत्वपूर्ण स्थान है।उनका अवतार मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था।अतः उसी तिथि को उनकी जयन्ती धूमधाम से मनायी जाती है।
कथा ---
एक बार सुमेरुपर्वत पर ब्रह्मा जी एवं शिव जी विराजमान थे।उसी समय समस्त देवता एवं ऋषिगण भी वहाँ पहुँच गये।देवताओं ने ब्रह्मा जी से अविनाशी तत्त्व का उपदेश करने का अनुरोध किया।ब्रह्मा जी यथार्थ न कहकर अपनी प्रशंसा करने लगे।उन्होंने कहा कि मै ही सर्वेश्वर एवं सर्वश्रेष्ठ हूँ।यह बात विष्णु जी को अच्छी नहीं लगी।उन्होने प्रतिवाद भी किया।अन्त मे वेदों से साक्ष्य माँगा गया।वेदों ने बतलाया कि शिव जी ही परम तत्त्व हैं।यह बात ब्रह्मा और विष्णु को अच्छी नहीं लगी।उन्होंने शिव जी की निन्दा करनी आरम्भ कर दी।प्रणव ने भी उपस्थित होकर दोनो को समझाया किन्तु वे नहीं माने।
उसी समय एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई।उसमे से त्रिशूलधारी नीललोहित शिव जी प्रकट हुए।ब्रह्मा जी ने पुनः अपमान जनक बातें कही।शिव जी क्रुद्ध हो गये।उन्होंने कालभैरव नामक पुरुष को उत्पन्न कर ब्रह्मा को दण्डित करने का आदेश दिया।कालभैरव ने ब्रह्मा के पाँचवें मुख को काट दिया।वह मुख भैरव के हाथ मे चिपक गया।भयभीत ब्रह्मा ने शिव जी से क्षमा याचना की।अतः उन्होने कालभैरव को शान्त कर दिया।उसके बाद भैरव भिक्षाटन हेतु भ्रमण करने लगे।जब वे वाराणसी के कपालमोचन तीर्थ मे पहुँचे तो वह चिपका हुआ शिर छूटकर गिर गया।शिव जी के आदेशानुसार वे आज भी वाराणसी की सुरक्षा मे संलग्न हैं।
व्रत एवं पूजनविधि ----
व्रत करने वाले को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रातःकाल स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत एवं भैरव-पूजन का संकल्प ले।फिर गन्ध ; अक्षत ;पुष्प ;धूप; दीप ;नैवेद्य आदि से उनका विधिवत पूजन करे।कालभैरव को लालचन्दन; रोली; सिन्दूर ;लालफूल ;तिल का तेल; लोहबान ;लालवस्त्र ;भुनाकेला; सरसों का तेल आदि विशेष प्रिय है।अतः ये वस्तुयें उन्हें अवश्य समर्पित करना चाहिए।उसके बाद रात्रि जागरण करे।ब्राह्मण-भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे।
माहात्म्य ---
शास्त्रों मे कालभैरव का असीम महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।वे भगवान शंकर के अवतार होने के कारण अपने भक्तों को अभीष्टसिद्धि का वरदान देने मे पूर्ण सक्षम एवं समर्थ हैं।जो व्यक्ति उनकी प्रतिमा के निकट उपवास पूर्वक रात्रि जागरण करता है ; उसके सभी पाप सदैव के लिए नष्ट हो जाते हैं।इतना ही नहीं ; बल्कि उनके दर्शन मात्र से मनुष्य पापमुक्त हो जाता है।उनकी भक्ति से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह दीर्घायु एवं यशस्वी हो जाता है।मंगलवार युक्त अष्टमी एवं चतुर्दशी को कालभैरव का दर्शन विशेष पुण्यकारी होता है।
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