मोक्षदा एकादशी - व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है।यह एकादशी अपने भक्तों एवं उनके पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली है।इसीलिए इसको मोक्षदा एकादशी कहा जाता है।
कथा --
प्राचीन काल मे चम्पानगर मे वैखानस नामक राजा राज्य करता था।एक बार उसने स्वप्न देखा कि उसके पितर नरक मे पड़े हैं और अपने उद्धार के लिए पुकार लगा रहे हैं।दूसरे दिन राजा ने ब्राह्मणों से इस स्वप्न के विषय मे चर्चा की।ब्राह्मणों ने राजा को पर्वतमुनि के पास भेजा।मुनि ने बताया कि आप मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी का व्रत करें और उसका पुण्य अपने पितरों को समर्पित कर दें ; तो उनका उद्धार हो जायेगा।राजा ने वैसा ही किया और उसके पितरों का उद्धार हो गया।
विधि ---
व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर गन्ध ; पुष्प ; अक्षत ; धूप ; दीप ; नैवेद्य ; नीराजन ; पुष्पाञ्जलि आदि के द्वारा भगवान विष्णु का षोडशोपचार पूजन करे।विष्णु सम्बन्धी किसी स्तोत्र आदि का भक्तिपूर्वक पाठ करे।नियमपूर्वक उपवास या फलाहार करे।दूसरे दिन विष्णु - पूजन - पूर्वक पारणा करे।
माहात्म्य --
सामान्यतः सभी एकादशियों से असीम पुण्यफल की प्राप्ति होती है किन्तु इस एकादशी का विशेष महत्व है।जो व्यक्ति इसका व्रत करता है ; वह समस्त पापों से मुक्त होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है।उसे समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो जाती है।अन्त मे उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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