Wednesday, 2 December 2015

अनघाष्टमी - व्रत

         अनघाष्टमी का व्रत मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को किया जाता है।इसे अनघाष्टमी कहने के दो कारण हैं।प्रथम कारण यह है कि अघ का अर्थ है -- पाप।जो समस्त पापों का नाश करने वाली है ; उसे अनघाष्टमी कहा जाता है।दूसरा कारण यह है कि भगवान दत्तात्रेय का दूसरा नाम अनघ था।यह तिथि उन्हीं के अवतरण से सम्बन्धित होने के कारण अनघाष्टमी कहलाती है।

कथा ---

         प्राचीन काल मे महर्षि अत्रि की पत्नी अनसूया के गर्भ से दत्त ( दत्तात्रेय ) नामक पुत्र उत्पन्न हुए।ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे।इनकी पत्नी नदी लक्ष्मीस्वरूपा थीं।एक बार जंभ नामक दैत्य से पराजित होकर देवताओं ने इनके विन्ध्यगिरि - स्थित आश्रम मे शरण लिया।दैत्यगण भी देवताओं को खोजते हुए वहाँ आ गये।वे क्रुद्ध होकर दत्तात्रेय की पत्नी को लेकर चल पड़े।किन्तु उन्हें उठाते ही सभी दैत्य श्रीहीन हो गये और दत्त जी की दृष्टि पड़ते ही वे भागने लगे।देवताओं ने उन्हें पराजित कर स्वर्ग पर पुनः अधिकार कर लिया।
           भगवान दत्तात्रेय की इस महिमा को सुनकर माहिष्मती - नरेश कार्तवीर्यार्जुन उनके पास गया और उनकी सेवा करने लगा।दत्त जी ने प्रसन्न होकर उसे अष्टसिद्धियों से युक्त चक्रवर्ती राजा बना दिया।बाद मे उसने सम्पूर्ण पृथ्वी पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।उसने रावण को भी बन्दी बना लिया था ; जिसे महर्षि पुलस्त्य ने मुक्त कराया था।उसी राजा कार्तवीर्यार्जुन ने ही पृथ्वीलोक मे अनघाष्टमी - व्रत को प्रवर्तित किया था।

विधि ----

        व्रत करने वाले को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।फिर कुशों से निर्मित स्त्री - पुरुष की प्रतिमा भूमि पर स्थापित करे।पुरुष - प्रतिमा मे अनघ का और स्त्री - प्रतिमा मे अनघा का आवाहन करे।फिर विष्णुसूक्त से गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य नीराजन पुष्पाञ्जलि आदि समर्पित करे।बाद मे ब्राह्मणों एवं बन्धु-बान्धवों को भोजन कराकर स्वयं भी भोजन करे।

माहात्म्य --

        शास्त्रों मे अनघाष्टमी व्रत का असीम महत्व वर्णित है।इसके प्रभाव से व्रती के कायिक वाचिक एवं मानसिक पापों का विनाश हो जाता है।उसे आठों सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।वह भगवान विष्णु का प्रियपात्र बन जाता है।उसके घर मे लक्ष्मी का वास हो जाता है।वह स्त्री-पुत्र ; धन-धान्य ; सुख-समृद्धि आदि से परिपूर्ण हो जाता है।

No comments:

Post a Comment