गीता - जयन्ती मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल मे मोहग्रस्त अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।इसीलिए इस तिथि को गीता - जयन्ती पूरे देश मे बड़े धूमधाम के साथ मनाई जाती है।इस तिथि का महत्व इसीलिए है कि इसी दिन हमे गीतारूपी अमूल्यनिधि की प्राप्ति हुई थी।इसकी गणना विश्व के सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थों मे की जाती है।
विधि ---
गीता - जयन्ती मनाने के इच्छुक व्यक्तियों को चाहिए कि वे मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष एकादशी को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर गीतापूजन की योजना बनायें।सर्वप्रथम किसी सुन्दर एवं सुसज्जित मञ्च या चौकी पर लाल या पीले वस्त्र मे लपेटी हुई गीता को स्थापित करें।उन्हीं के समीप योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण एवं महर्षि वेदव्यास की मनभावन प्रतिमा प्रतिष्ठित करें।फिर गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य नीराजन पुष्पाञ्जलि आदि द्वारा उनकी विधिवत पूजा करें।दिन भर गीता - पाठ एवं गीता पर व्याख्यान - प्रवचन आदि का आयोजन करें।यदि गीता - पाठ की सुविधा न हो तो " हरे कृष्ण हरे कृष्ण ; कृष्ण कृष्ण हरे हरे " मंत्र का संकीर्तन करें।इस प्रकार समारोह - पूर्वक जयन्ती मनायें और अन्त मे प्रसाद वितरण कर विसर्जित करें।
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