Monday, 28 December 2015

सम्प्राप्ति-द्वादशी-व्रत

           सम्प्राप्ति-द्वादशी-व्रत का आरम्भ पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि से किया जाता है।इस व्रत की सम्पूर्ण अवधि एक वर्ष की है।इसे छः छः महीने मे दो बार मे पूरा किया जाता है।पहली बार पौष से ज्येष्ठ मास तक तथा दूसरी बार आषाढ़ से मार्गशीर्ष तक किया जाता है।इस व्रत के द्वारा समस्त कामनायें सम्यक् रूप से पूर्ण हो जाती हैं।इसीलिए इसे सम्पूर्ति-द्वादशी-व्रत कहा जाता है।

कथा --

          इस व्रत का उपदेश भगवान श्रीकृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से किया था।द्वादशी तिथि के स्वामी भगवान विष्णु हैं।श्री कृष्ण जी विष्णु जी के अवतार हैं।अतः उनके द्वारा उपदेशित यह पर्व निश्चित रूप से उत्तम पुण्य फलदायक है।

विधि ---

           व्रती को चाहिए कि वह पौष मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को प्रातः नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत एवं पूजन का संकल्प ले।फिर गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि के द्वारा भगवान पुण्डरीकाक्ष का षोडशोपचार पूजन करे।दिन भर उपवास पूर्वक विष्णु जी का संकीर्तन करे।दूसरे दिन ब्राह्मण-भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करे।
           यह व्रत छः महीने तक किया जाता है।अतः माघ आदि अग्रिम पाँच महीनों की कृष्णा द्वादशी को क्रमशः माधव ; विश्वरूप ; पुरुषोत्तम ; अच्युत एवं जय नाम से भगवान का पूजन करे।प्रत्येक बार ब्राह्मण-भोजन एवं दक्षिणा प्रदान करे।आषाढ़ मास मे पुनः अग्रिम छः मास के लिए संकल्प लेकर पहले की भाँति व्रत करे।

माहात्म्य ---

           यह व्रत बहुत प्रभावशाली एवं पुण्यदायक है।जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से एक वर्ष तक करता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह पूर्ण सुखमय जीवन व्यतीत करने के बाद अन्त मे भगवान के लोक को प्राप्त करता है।अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।

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