पौष मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि का महत्व शास्त्रों की अपेक्षा लोकरीति मे अधिक है।इस तिथि से सम्बन्धित प्रमुख मान्यतायें इस प्रकार हैं --
1-- इस दिन जो व्यक्ति जिस प्रकार का भोजन करता है ; उसे वर्ष-पर्यन्त उसी प्रकार का भोजन प्राप्त होता है।इसलिए प्रायः सभी घरों मे विविध प्रकार के सुस्वादु व्यञ्जनों का निर्माण किया जाता है।परिवार के सभी लोग प्रायः एक साथ प्रेम पूर्वक भोजन करते हैं।
2-- इस तिथि को कोई भी व्यक्ति दूसरों के घर अतिथि रूप मे नही जाता है और न तो दूसरों के घर मे भोजन ही करता है।अन्यथा उसे वर्ष भर दूसरों के घर मे ही भटकना पड़ता है।उसे घर का सुखमय भोजन उपलब्ध नही हो पाता है।
3-- यदि इस दिन किसी के घर पर अतिथि आ गये तो वर्ष भर अतिथियों का आवागमन लगा रहता है।
4-- इस दिन कोई व्यक्ति उधार पैसे नही देता है ।अन्यथा उस पैसे के वापस होने मे सन्देह बना रहता है।
5-- इस तिथि को कोई व्यक्ति ऋण की वापसी भी नही करता और न ऋण लेता है।अन्यथा वर्ष भर ऋणग्रस्तता बनी रहती है।
6-- इस दिन दुकानदार भी उधार सामान नही देता है।अन्यथा वर्ष पर्यन्त उधार ही देता रहेगा।
7-- इस दिन लोग कम से कम व्यय करते हैं।अन्यथा वर्ष भर अपव्यय होता रहता है।
पूजन कार्य --
शास्त्रीय दृष्टि से प्रतिपदा तिथि के स्वामी अग्निदेव हैं।मानव-जीवन मे अग्नि की असीम महत्ता है।भोजन बनाने और यज्ञ करने से लेकर अन्त्येष्टि क्रिया तक अग्नि की ही प्रधानता है।इसके अभाव मे तो मानव-जीवन के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लग जायेगा।ऋग्वेद मे भी सर्वप्रथम अग्नि की ही उपासना की गयी है।अतः प्रतिपदा को अग्निदेव का विधिवत् पूजन करना चाहिए।इनके पूजन हेतु " ऊँ अग्नये नमः " मंत्र ही पर्याप्त है।इसी मंत्र से गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप नैवेद्य आदि समर्पित करना चाहिए।
पहले जब चूल्हे मे भोजन बनता था ; तब महिलायें पहली रोटी छोटी सी बनाकर चूल्हे की अग्नि मे डाल देती थीं।यह रोटी अग्निदेव को हवन के रूप मे दी जाती थी।परन्तु अब चूल्हों के अभाव मे यह कार्य संभव नही हो पाता है।अतः सबको चाहिए कि प्रतिदिन अग्निदेव को किसी भी ढंग से एकादि आहुति अवश्य दें।इससे अग्निदेव की कृपा सदैव बनी रहती है।
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