Saturday, 26 December 2015

सफला-एकादशी-व्रत

           सफला-एकादशी-व्रत पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।यह व्रत जाने-अनजाने मे भी हो जाय तो भी पूर्ण फल प्राप्त होता है।इसीलिए इसको सफला-एकादशी-व्रत कहा जाता है।

कथा --

           प्राचीन काल मे चम्पावती मे माहिष्मत नामक राजा राज्य करता था।वह बहुत सुयोग्य एवं धार्मिक था।उसके पाँच पुत्र थे।ज्येष्ठ पुत्र का नाम लुम्भक था।वह बहुत उच्छृङ्खल ; दुराचारी एवं परस्त्रीगामी था।राजा ने उसे सुधारने का बहुत प्रयास किया किन्तु सफलता नही मिली।अतः राजा ने उसे अपने राज्य से बहिष्कृत कर दिया।वह जंगलों मे निवास करते हुए चोरी आदि के द्वारा अपना जीवन-यापन करने लगा।एक दिन उसे चोरी करते हुए सिपाहियों ने पकड़ लिया किन्तु राजकुमार होने के कारण उसे मुक्त कर दिया।उसके मन-मस्तिष्क पर इस घटना का बहुत प्रभाव पड़ा।उसने उसी दिन से चोरी करनी बन्द कर दी।अब वह मांस ; मछली ; फल-फूल आदि के आधार पर जीवन-यापन करने लगा।
           संयोगवश पौष मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि आ गयी।उस दिन उसे मांस नहीं मिल सका।उसने फल-फूल आदि खाकर दिन-रात व्यतीत किया।दूसरे दिन एकादशी के दिन भी अशक्त होने के कारण भूखा पड़ा रहा।शाम को फल-फूल ढूँढ कर लाया।उसने अचानक भगवान को स्मरण कर फल-फूल उन्हें समर्पित कर दिया।अस्वस्थता एवं अशक्तता के कारण राम-राम कहते हुए रात्रि व्यतीत की।द्वादशी को प्रातः आकाशवाणी हुई कि हे राजकुमार तुमने अनजाने मे ही सफला-एकादशी का व्रत कर लिया है।अतः तुम शीघ्र ही पुत्र एवं राज्य को प्राप्त कर लोगे।इसके प्रभावस्वरूप कालान्तर मे उसे राज्य पुत्र आदि सब कुछ प्राप्त हो गया।दीर्घकाल तक सानन्द शासन करने के बाद उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया।

विधि ---

           सफला-एकादशी-व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को नित्यकर्म करके व्रत का संकल्प ले।फिर गन्ध ; पुष्प ; धूप ; दीप ; नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का विधिवत् पूजन करे।दिन भर उपवास या फलाहार करे।दूसरे दिन यथाविधि पारणा करे।

माहात्म्य --

           सामान्य रूप से सभी एकादशियाँ भगवान विष्णु को प्रिय एवं पुण्य-फलदायक हैं।परन्तु सफला एकादशी विशेष महत्वपूर्ण है।इसे जाने अनजाने किसी भी प्रकार कर लेने पर पूर्ण फल की प्राप्ति होती है।जो व्यक्ति इस व्रत का श्रद्धा एवं भक्ति के साथ करता है ; वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।उसे समस्त सुखों की प्राप्ति अनायास हो जाती है।अन्त मे मृत्यु के पश्चात् उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।

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