नन्दासप्तमी - व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को किया जाता है।वास्तव मे मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी नन्दा के नाम से विख्यात है।इसलिए इसे नन्दासप्तमी - व्रत कहा जाता है।
विधि --
व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष शुक्ल पञ्चमी को एकभुक्त तथा षष्ठी को नक्तव्रत करे।सप्तमी को स्नानादि से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से भगवान सूर्य नारायण का विधिवत् पूजन करे।इसमे मालती-पुष्प ; सुगन्ध ; चन्दन ; कर्पूर तथा अगरु मिश्रित धूप के प्रयोग का विधान है।नैवेद्य मे शर्कराखण्ड मिश्रित दही-भात अर्पित करे।ब्राह्मणों को भी इन्ही वस्तुओं का भोजन कराये।बाद मे स्वयं भी इन्ही वस्तुओं का भोजन करे।
विद्वानो ने इस व्रत मे तीन पारणा का विधान किया है।प्रथम पारणा मे पलाश-पुष्प तथा धूप से सूर्य का पूजन करे और विष्णुः प्रीयताम् कहे।द्वितीय पारणा मे सूर्यदेव को धूप और शर्कराखण्ड मिश्रित पुए अर्पित करते हुए भगः प्रीयताम् कहे।तृतीय पारणा मे कमल-पुष्प ; गुग्गुल की धूप और पायस का नैवेद्य अर्पित करते हुए धाता प्रीयताम् कहे।
माहात्म्य --
सूर्यनारायण प्रत्यक्ष देवता हैं।उनके पूजन का विशेष महत्व है।उन्हे सप्तमी तिथि बहुत प्रिय है।जो व्यक्ति सप्तमी - व्रत एवं सूर्यपूजन करता है ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।वह अनन्तकाल तक सानन्द जीवन व्यतीत करता है और अन्त मे सूर्यलोक मे आनन्दपूर्वक निवास करता है।
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