Saturday, 12 December 2015

अवियोगतृतीया - व्रत

           अवियोगतृतीया का व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है।जो स्त्री इस व्रत को करती है ; उसका अपने पति से कभी वियोग नहीं होता है।इसीलिए इसे अवियोगतृतीया-व्रत कहा जाता है।

कथा ---

          एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव जी से पूछा कि कोई ऐसा व्रत बतलायें ; जिसे करने से पत्नी अपने पति से कभी वियुक्त न हो।तब शिव जी ने अवियोगतृतीया - व्रत करने का निर्देश दिया था।बाद मे अरुन्धती से महर्षि वसिष्ठ ने भी इसी व्रत का उल्लेख किया था।

विधि ---

          व्रत करने वाली स्त्री को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की द्वितीया को रात्रि मे पायस - भक्षण कर शिव - पार्वती को प्रणाम कर शयन करे।तृतीया को गूलर की दातौन कर स्नान करे और व्रत का संकल्प ले।शालि चावल के चूर्ण से शिव - पार्वती की मूर्ति बनाकर चौकी पर स्थापित करे।फिर गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य नीराजन आदि से विधिवत पूजन करे।दिन भर उपवास करे।रात्रि मे संकीर्तन करती हुई जागरण करना चाहिए।दूसरे दिन उस मूर्ति को दक्षिणा सहित आचार्य को दान करे।इस अवसर पर ब्राह्मण - दम्पति की पूजा का पर्याप्त महत्व है।अन्त मे ब्राह्मण - भोजन कराने के बाद स्वयं आहार ग्रहण करे।
         इसी प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक शुक्ला तृतीया को व्रत एवं पूजन करना चाहिए।इस व्रत मे बारहो महीने शिव - पार्वती के भिन्न - भिन्न नामो से पूजन करने का विधान है।मार्गशीर्ष मे शिव-पार्वती के नाम से ; पौष मे गिरीश-पार्वती ; माघ मे भव-भवानी ; फाल्गुन मे महादेव-उमा ; चैत्र मे शंकर-ललिता ; वैशाख मे स्थाणु-लोलनेत्रा ; ज्येष्ठ मे वीरेश्वर-एकवीरा ; आषाढ़ मे पशुपति-शक्ति ; श्रावण मे श्रीकण्ठ-सुता ; भाद्रपद मे भीम-कालरात्रि ; आश्विन मे शिव-दुर्गा और कार्तिक मे ईशान-शिवा नाम से पूजन करना चाहिए।
        इस व्रत मे भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रसन्नता के लिए प्रत्येक महीने मे क्रमशः नीलकमल ; कनेर ; विल्बपत्र ; पलाश ; कुब्ज ; मल्लिका ; पाढर ; श्वेतकमल ; कदम्ब ; तगर ; द्रोण तथा मालती पुष्प समर्पित करना चाहिए।

माहात्म्य --

         इस व्रत को करने से स्त्री अपने पति से कभी वियुक्त नहीं होती है।वह जन्म-जन्मान्तर मे भी विधवा नही होती है।उसे सुन्दर रूप और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।वह धन-धान्य ; पति-पुत्र ; सुख-समृद्धि आदि से परिपूर्ण रहती है।वह जीवन के सम्पूर्ण सुखों का उपभोग कर अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करती है।

उद्यापन --

     एक वर्ष तक इस व्रत को करने के बाद कार्तिक शुक्ला तृयीया को विधिवत उद्यापन करना चाहिए।

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