Monday, 21 December 2015

यमादर्शन-व्रत ( धर्मराज-समाराधन-व्रत )

           यमादर्शन-व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की उस त्रयोदशी को किया जाता है ; जब शनि ; मंगल या रविवार न हो।इस व्रत को करने से मनुष्य को यमलोक का दर्शन नही करना पड़ता है।इसलिए इसे यमादर्शन-व्रत कहा जाता है।इस व्रत से धर्मराज प्रसन्न होते हैं।इसलिए इसे धर्मराज-समाराधन-व्रत कहा जाता है।यह व्रत नरक के कष्टों का विनाश करने वाला होने के कारण नरकार्ति-विनाशिनी-त्रयोदशी-व्रत भी कहा जाता है।

कथा --

           एक बार श्रीकृष्ण ने मुद्गलमुनि से किसी ऐसे व्रत के विषय मे पूछा ; जिसे करने से नरक या यमदूतों का दर्शन न करना पड़े।इस पर मुनिवर ने बताया कि एक बार मै मूर्च्छित होकर गिर गया।तब मैने मूर्च्छावस्था मे देखा कि लाठी-डण्डा-युक्त कुछ लोगों ने मेरे हृदय से अँगूठे के बराबर एक व्यक्ति को बलात् निकालकर उसे यमलोक ले गये।वहाँ यमराज के पास यमदूत ; नाना प्रकार के रोग-शोक ; मृत्यु ; राक्षस ; हिंसक जीव आदि सशरीर विराजमान थे।
            यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि तुम लोग मुद्गलमुनि को क्यों लाये हो ? मैने तो कौण्डिन्य - नगर - निवासी मुद्गल नामक क्षत्रिय को लाने के लिए आदेश दिया था।अतः इन्हें मुक्त कर दो और उस मुद्गल को ले आओ।दूतगण कौण्डिन्य-नगर गये किन्तु मुद्गल मे मृत्यु के कोई लक्षण न देखकर वापस लौट आये और यमराज को सम्पूर्ण वृत्तान्त सुनाया।यमराज ने कहा कि उसने नरकार्ति-विनाशिनी-त्रयोदशी का व्रत किया है।उसी के प्रभाव से तुम लोग उसे पहचान नहीं सके।यमदूतों ने उस व्रत के विषय मे जिज्ञासा व्यक्त किया।तब यमराज ने उसके विषय मे विस्तार से वर्णन किया।

विधि ---

           व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की शुभवासरीय त्रयोदशी को प्रातः स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।फिर तेरह विद्वान ब्राह्मणों एवं एक पुण्याहवाचक का वरण कर उन्हें पवित्र आसन पर उत्तराभिमुख विराजमान करे।स्वयं पूर्वाभिमुख होकर उनका सत्कार करे।सभी को पृथक्-पृथक् ताम्रपात्र मे एक किलो तिल-तण्डुल ; दक्षिणा ; छत्र ; जलपूर्ण कलश प्रदान कर विदा करे।इसी प्रकार एक वर्ष तक व्रत करके विधिवत् उद्यापन करे।

माहात्म्य --

           इस व्रत का वर्णन स्वयं धर्मराज ( यमराज ) ने किया है।इसलिए इसकी विशिष्ट महत्ता है।जो व्यक्ति एक बार भी इस व्रत को कर लेता है ; उसे यमलोक नहीं जाना पड़ता है।वह यमराज की माया से अदृश्य रहता है।साथ ही सुख-सुविधा पूर्ण जीवन-यापन कर अन्त मे विमान द्वारा विष्णुपुर एवं शिवपुर को जाता है।

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