Saturday, 5 December 2015

उत्पन्ना एकादशी व्रत

         उत्पन्ना एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है।इस दिन भगवान विष्णु के शरीर से कन्या रूप मे एकादशी की उत्पत्ति हुई थी।इसीलिए इसको उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है।

कथा ----

        सत्ययुग मे मुर नामक एक शक्तिशाली दानव था।उसने इन्द्रादि देवों को पराजित कर स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया था।देवगण भागकर महादेव की शरण मे गये।महादेव ने उन्हें विष्णु जी के पास भेजा।देवताओं के अनुरोध पर विष्णु जी ससैन्य मुर की नगरी चन्द्रावतीपुरी पहुँचे।मुर ने देवों पर आक्रमण कर दिया।भगवान विष्णु ने दानव - सेना का संहार कर दिया।परन्तु मुरदानव बचकर भाग गया।
         इसके बाद विष्णु जी बदरिकाश्रम चले गये और वहाँ एक गुफा मे सो गये।पीछे से मुर दानव भी पहुँच गया।उसने विष्णु जी को मारने का प्रयास किया।उसी समय विष्णु जी के शरीर से एक कन्या उत्पन्न हुई।उसने मुर दानव से युद्ध करने की इच्छा व्यक्त की।मुर दानव उस कन्या पर टूट पड़ा।परन्तु कन्या के हुंकार मात्र से वह दानव भस्म हो गया।जब भगवान जगे तब उन्होंने पूछा कि इस दानव का वध किसने किया।कन्या ने सम्पूर्ण घटना सुना दी।वह कन्या कोई साधारण प्राणी नहीं थी बल्कि एकादशी ही थी।विष्णु जी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा।एकादशी ने कहा कि मै विघ्नविनाशिनी ; सर्वसिद्धिप्रदायिनी एवं समस्त तीर्थों मे श्रेष्ठ बन जाऊँ।जो व्यक्ति मेरी तिथि पर व्रत करे ; उसकी समस्त कामनायें पूर्ण हो जायँ।भगवान ने एवमस्तु कह दिया।यह घटना मार्शीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी को हुई थी।इसीलिए यह उत्पन्ना एकादशी कहलाती है।

विधि --

        एकादशी - व्रत का आरम्भ चैत्र वैशाख मार्गशीर्ष या माघ से करना चाहिए।व्रती को चाहिए कि एकादशी को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्वस्तिवाचन पूर्वक व्रत का संकल्प ले।गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से विष्णु जी का पूजन करे।विष्णु सम्बन्धी किसी स्तोत्र का पाठ करे।दिन भर उपवास करे।रात्रि मे कथा ; स्तोत्रपाठ ; भजन आदि करते हुए जागरण करे।दूसरे दिन विष्णु - पूजन करने के बाद पारणा करे।इस व्रत मे असमर्थ व्यक्ति फलाहार ; एक भुक्त या नक्तव्रत भो कर सकता है।

माहात्म्य ---

        भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करने वाले जितने भी व्रत बताये गये हैं ; उनमे एकादशी का व्रत सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सुखी समृद्ध ; दुःखमुक्त एवं विष्णुप्रिय हो जाता है।अन्त मे उसे विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।पुराणों मे इसका माहात्म्य बताते हुए कहा गया है कि अश्वमेध यज्ञ करने या दस हजार गोदान करने से जो फल प्राप्त होता है ; वही फल एकादशी व्रत से मिल जाता है।इस प्रकार एकादशी व्रत से असीम पुण्य की प्राप्ति होती है।

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