शास्त्रों मे वर्ष के बारहों महीनों मे भगवान सूर्य नारायण के भिन्न-भिन्न नाम-रूपों की आराधना करने का विधान बताया गया है।मार्गशीर्ष मास मे " मित्र " नामक सूर्य की उपासना करनी चाहिए।सूर्यदेव को सप्तमी तिथि विशेष प्रिय है।इसीलिए मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मित्रसप्तमी - व्रत किया जाता है।
विधि ---
व्रतनिष्ठ व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत एवं सूर्यपूजन का संकल्प ले।फिर गन्ध ; अक्षत ; पुष्प ; धूप ; दीप ; नैवेद्य आदि से सूर्यदेव की षोडशोपचार पूजन करे।सूर्यपूजन मे रक्तचन्दन एवं करवीर-पुष्प का विशेष महत्व है।व्रती को उपवास पूर्वक फलाहार करना चाहिए।दूसरे दिन अर्थात् अष्टमी को ब्राह्मणों को भोजन कराये और दक्षिणा देकर उन्हें सन्तुष्ट करे।उसके बाद स्वयं भी मधु से भीगे हुए अन्न का भोजन करे।
माहात्म्य ---
इस व्रत को करने से सूर्यदेव बहुत प्रसन्न होते हैं।वे अपने भक्तों की समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं।इस व्रत से मनुष्य धन ; पुत्र ; विद्या ; कीर्ति आदि सब कुछ प्राप्त कर लेता है।
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