Monday, 14 December 2015

स्कन्दषष्ठी - व्रत

          स्कन्दषष्ठी - व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है।इसी दिन भगवान शिव जी के पुत्र कुमार कार्तिकेय ( स्कन्द ) ने तारकासुर का संहार किया था।इसीलिए इसको स्कन्दषष्ठी कहा जाता है।

कथा --

           प्राचीन काल मे तारक नामक एक महा बलशाली असुर हुआ था।उसने समस्त लोकों को अपने वश मे करके इन्द्रासन पर अधिकार कर लिया था।पराजित देवताओं ने अपनी व्यथा ब्रह्मा जी से निवेदन किया।ब्रह्मा जी ने बतलाया कि तारकासुर का वध शिव जी के वीर्य से उत्पन्न कोई पुत्र ही कर सकता है।अतः अब हम सबको शिव जी को पार्वती से विवाह करने के लिए राजी करना चाहिए।कालान्तर मे दोनो का विवाह हुआ और कुमार कार्तिकेय का आविर्भाव हुआ।देवताओं ने उन्हें अपना सेनापति नियुक्त किया।
           बाद मे कार्तिकेय के अधिनायकत्व मे देवताओं ने तारकासुर से युद्ध करने के लिए प्रस्थान किया।तारकासुर भी विशाल सेना के साथ युद्धक्षेत्र मे आ गया।दोनो पक्षों मे भयानक युद्ध आरम्भ हो गया।क्षण भर मे ही सम्पूर्ण रणभूमि रुण्ड-मुण्डों से व्याप्त हो गयी।तारकासुर से शिव जी के गणो एवं विष्णु जी ने भी युद्ध किया परन्तु वह पराजित नही हुआ।तब कार्तिकेय जी ने तारकासुर से युद्ध करना आरम्भ किया।दोनो ने अनेक दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया।अन्त मे कार्तिकेय जी ने माता पार्वती एवं शिव जी को प्रणाम करके एक दिव्य - शक्ति से प्रहार किया।असुरराज के सभी अंग छिन्न-भिन्न हो गये और उस अमित बलशाली अजेय दैत्य का प्राणान्त हो गया।

विधि ---

          व्रत के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की षष्ठी को नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।उपवास पूर्वक अपराह्न काल मे सुवर्ण ; रजत या मिट्टी से निर्मित कार्तिकेय-प्रतिमा को स्थापित करे।एकाग्रचित्त हो ध्यान करे और निम्नलिखित मंत्र से उनका अभिषेक करे --

चन्द्रमण्डलभूतानां भवभूतिपवित्रिता।
गङ्गाकुमार धारेयं पतिता तव मस्तके।।
       
         इसके बाद सुन्दर गन्ध ; अक्षत ; पुष्प ; धूप ; दीप ; नैवेद्य ; नीराजन आदि से विधिवत् पूजन कर प्रार्थना करे --

देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव ।
कुमार गुह गाङ्गेय शक्तिहस्त नमोऽस्तु ते।।

         तदनन्तर छाग ; कुक्कुट ; कलापयुक्त मयूर एवं माता पार्वती का पूजन करे।फिर कार्तिकेय के विभिन्न नामो से घृतमिश्रित तिल की हवन करे।रात्रि मे फलाहार कर कुश-शय्या पर भूशयन करे।दूसरे दिन सुवर्णनिर्मित छाग या कुक्कुट की प्रतिमा
" सेनानी प्रीयताम् " कहकर ब्राह्मण को दान करे।ब्राह्मण - भोजन कराने के बाद स्वयं भी आहार ग्रहण करे।
         इस व्रत को एक वर्ष तक किया जाय तो विशेष पुण्यलाभ होता है।बारह महीनो मे क्रमशः सेनानी ; सम्भूति ; क्रौंचारि ; षण्मुख ; गुह ; गाङ्गेय ; कार्तिकेय ; स्वामी ; बालग्रहाग्रणी ; छागप्रिय ; शक्तिधर एवं द्वार -- इन नामो से कुमार कार्तिकेय का पूजन करे।प्रत्येक नाम के अन्त मे " प्रीयताम् " जोड़ देना चाहिए।जैसे - सेनानी प्रीयताम् आदि।वर्ष पूर्ण होने पर कार्तिक शुक्ल षष्ठी को कार्तिकेय का विधिवत् पूजन कर समस्त सामग्री ब्राह्मण को दान करे।

माहात्म्य --

         इस व्रत का बहुत अधिक माहात्म्य है।इस दिन किये गये स्नान दान से अक्षय पुण्यलाभ होता है।यह व्रत प्रबल पापनाशक ; धन-धान्य-वर्धक और शान्तिप्रदायक है।इससे व्रती को परम कल्याण की प्राप्ति होती है।जो स्त्री या पुरुष इस व्रत को करते हैं ; वे उत्तम फलों का भोगकर इन्द्रलोक को प्राप्त करते हैं।जो भक्तिपूर्वक कार्तिकेय का दर्शन एवं पूजन करता है ; वह शिवलोक को प्राप्त करता है।इस व्रत को करने वाला व्यक्ति सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर कार्तिकेय - लोक मे निवास करता है।

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