सर्वफलत्याग-चतुर्दशी-व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी अथवा अन्य मासों की अष्टमी तिथि को किया जाता है।इसमे फलत्याग की प्रधानता होने के कारण इसे सर्वफलत्याग-चतुर्दशी-व्रत कहा जाता है।
कथा --
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से किसी ऐसे व्रत का वर्णन करने का अनुरोध किया ; जिसे करने से समस्त कामनायें पूर्ण हो जायें।तब श्रीकृष्ण ने सर्वफलत्याग-चतुर्दशी-व्रत का निर्देश किया था।
विधि --
व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर ब्राह्मणों को आमंत्रित कर उन्हें पायस-भोजन एवं दक्षिणा से सन्तुष्ट करे।इस दिन से एक वर्ष के लिए निन्दनीय फल-मूल एवं निन्दित अन्न का परित्याग कर दे।यदि सब फल न त्याग सके तो एक फल का त्याग अवश्य करे।
वर्ष के अन्त मे चतुर्दशी को दो कलशों की स्थापना करे।उनके ऊपर पृथक्-पृथक् सुवर्ण-निर्मित रुद्र एवं धर्मराज की प्रतिमा स्थापित कर उनका विधिवत् पूजन करे।सुवर्ण के सोलह कूष्माण्ड तथा मातुलुंग ; बैगन ; कटहल ; आम्र ; आमड़ा ; कैथा ; तरबूज ; ककड़ी ; श्रीफल ; वट ; अश्वत्थ ; जम्बीरी-नीबू ; केला ; बेर और अनार बनवाये।मूली ; आँवला ; जामुन ; कमलगट्टा ; करौंदा ; गूलर ; नारियल ; अंगूर ; दो बनभंटा ; कंकोल ; काकमाची ; खीरा ; करील ; कुटज एवं शमी -- ये सोलह फल चाँदी के बनवाये।ताल ; अगस्त्य ; पिड़ार ; खजूर ; सूरन ; कंदक ; कटहल ; बड़हल ; खेकसा ; इमली ; चित्रावल्ली ; कूटशाल्मलिका ; महुआ ; कारवेल्ल ; वल्ली एवं गुदपटोलक -- इन सोलह फलों को ताम्र के बनवाये। सबका विधिवत् पूजन करके प्रतिमा सहित समस्त सामग्री ब्राह्मण को दान कर दे।बाद मे ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं भी भोजन करे।
माहात्म्य --
यद्यपि यह व्रत बहुत व्यय-साध्य है किन्तु इसका माहात्म्य बहुत अधिक है।जो व्यक्ति इस व्रत को करके फलों का दान करता है ; उसे उन फलों मे जितने परमाणु होते हैं ; उतने सहस्र युगों तक रुद्रलोक मे निवास करने का सौभाग्य प्राप्त होता है।इस व्रत को स्त्री-पुरुष दोनो कर सकते हैं।जो इस व्रत को करता है ; उसे किसी भी जन्म मे इष्ट-वियोग का कष्ट नहीं होता है।
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