प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की अन्तिम तिथि को अमावस्या कहते हैं।इस दिन सूर्य और चन्द्रमा एक ही राशि के बराबर अंशों पर होते हैं।अमावस्या दो प्रकार की होती है -- सिनीवाली और कुहू।जिस अमावस्या को चन्द्रमा की हल्की सफेदी विद्यमान रहती है ; उसे सिनीवाली कहा जाता है।जिसमे कोयले के समान अन्धकार हो ; उसे कुहू कहा जाता है।अमावस्या को स्नान दानादि का विशेष महत्व है ; जिसका विवरण इस प्रकार है --
1-- स्नान -- अमावस्या को गंगा आदि पवित्र नदियों मे स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।यदि इस दिन गंगा ; यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तीर्थराज प्रयाग मे स्नान किया जाय तो अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्यलाभ होता है।
2-- दान --- अमावस्या को दान देने का बहुत अधिक महत्व है।इस दिन जो दान दिया जाता है ; वह पितृलोक मे पितरों को प्राप्त होता है।उसका पुण्यलाभ दाता को होता है।
3-- व्रत -- इस दिन जो व्रत करता है ; उसे अक्षयवट के नीचे की गयी श्राद्ध का फल प्राप्त होता है।
4 -- जप - तप -- अमावस्या के दिन जप-तप का भी विशेष महत्व है।इससे अधिकाधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
5 -- श्राद्ध एवं तर्पण -- अमावस्या के स्वामी पितर हैं।इसलिए यह तिथि उन्हें विशेष प्रिय है।जो व्यक्ति इस दिन श्राद्ध और तर्पण करता है ; वह धन-धान्य ; सुख-समृद्धि ; स्त्री-पुत्र आदि का पूर्ण सुख प्राप्त करता है।
सूर्य की ऊँचाई चन्द्रमा से अधिक है।अमावस्या के दिन चन्द्रमा का सफेद वाला भाग सूर्य की ओर रहता है।इसलिए उस दिन पृथ्वी पर जो दान ; पुण्य ; श्राद्ध आदि किये जाते हैं ; उनके वाष्पसम्भूत अंश सूर्य की किरणों द्वारा आकर्षित होकर पितृलोक मे चला जाता है।इसीलिए अमावस्या को श्राद्ध आदि करने का विधान है।
पितरों के लिए अक्षयवट बहुत उत्कृष्ट तीर्थ माना गया है।अतः जो व्यक्ति अमावस्या को वहाँ श्राद्ध करता है ; उसकी इक्कीस पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है।
6 -- पितृदोष - शान्ति --- पितृदोष की शान्ति के लिए अमावस्या की तिथि विशेष उपयुक्त मानी जाती है।
अमावस्या के विशेष पर्व --
सामान्य रूप से प्रत्येक मास की अमावस्या पर्वतिथि होने के कारण पवित्र एवं पुण्यदायिनी मानी जाती है।परन्तु कुछ महीनो की अमावस्या को विशेष पर्व होते हैं जिसका विवरण इस प्रकार है --
1- सोमवती अमावस्या -- जिस मास की अमावस्या सोमवार को पड़ जाती है ; वह विशेष पुण्यदायिनो होती है।
2- यदि चैत्र मास की अमावस्या को सोम ; मंगल या गुरुवार हो तो उस दिन दान ; पुण्य ; ब्राह्मण-भोजन ; व्रत आदि करने से सूर्यग्रहण के दिन किये गये दानादि के समान पुण्यफल प्राप्त होता है।
3-- ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वटसावित्री व्रत किया जाता है।
4- श्रावण मास की अमावस्या को हरियाली व्रत किया जाता है।
5- भाद्रपद मास की अमावस्या कुशोत्पाटिनी कहलाती है।
6- आश्विन मास की अमावस्या को पितृ विसर्जन होता है।
7- कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली होती है।
8- मार्गशीर्ष मास की अमावस्या को गौरीतप व्रत का आरम्भ होता है।
9- माघ मास की अमावस्या मौनी अमावस्या कहलाती है।इस दिन संगम स्नान का विशेष महत्व है।
10- फाल्गुन मास की अमावस्या को सोम ; मंगल ; गुरुवार या शनिवार हो तो वह सूर्यग्रहण से भी अधिक पुण्यदायिनी होती है।
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