Sunday, 20 December 2015

तारकद्वादशी -व्रत

           तारकद्वादशी - व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को किया जाता है।इसमे ताराओं सहित सूर्य-मण्डल का पूजन एवं दान किया जाता है।इसलिए इसे तारकद्वादशी - व्रत कहा जाता है।

कथा --

           एक बार महाराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से कहा कि मेरे कारण ही भीष्म द्रोण आदि महात्माओं का वध हुआ है।अतः उस वधरूपी पाप से मुक्त होने का कोई उपाय बतलाइये।तब श्रीकृष्ण ने तारक द्वादशी - व्रत करने का निर्देश दिया था।साथ ही एक कथा भी सुनाई।
          उस कथा के अनुसार प्राचीन काल मे कुशध्वज नामक राजा विदर्भ देश मे शासन कर रहा था।एक दिन वह वन मे आखेट करने गया।वहाँ उसने एक मृग पर बाण चलाया परन्तु वह बाण मृग के बजाय एक तपस्वी ब्राह्मण को लग गया।इससे उसकी मृत्यु हो गयी।इस ब्रह्महत्या के परिणाम - स्वरूप राजा को घोर नरक हुआ। बाद मे उसका जन्म सर्प ; सिंह आदि कई निकृष्ट योनियों मे हुआ।उसने पूर्व जन्म मे तारकद्वादशी का व्रत किया था।इसलिए वह इन योनियों से शीघ्र ही मुक्त हो जाया करता था।अन्त मे पुनः मानव योनि मे उसका जन्म हुआ और वह विदर्भ देश का राजा बना।इस जन्म मे उसने अनेक बार तारकद्वादशी का व्रत किया।इसके पुण्यस्वरूप उसने दीर्घकाल तक निष्कण्टक राज्य किया।फिर मृत्यु के बाद विष्णुलोक को प्राप्त किया।

विधि ---

           व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को प्रातः स्नानादि नित्यकर्म से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।दिन भर उपवास पूर्वक भगवान का पूजन और हवन करता रहे।शाम के समय गाय के गोबर से ताराओं सहित सूर्य-मण्डल की रचना करे।उसमे चन्दन से ध्रुव को भी अंकित करे।उनका विधिवत् पूजन करे।फिर ताम्रपात्र मे जल अक्षत पुष्प गन्ध फल सुवर्ण आदि डालकर अर्घ्य प्रदान करे।इसके बाद ब्राह्मण भोजन कराये और क्षमा-प्रार्थना करके स्वयं भी भोजन करे।
          इस प्रकार बारह महीनों तक व्रत करे।प्रत्येक महीनों मे ब्राह्मण को क्रमशः खण्डखाद्य ; सोहालक ; तिल-तण्डुल ; गुड़ के अपूप ; मोदक ; खण्डवेष्टक ; सत्तू ; गुड़-पूरी ; मधुशीर्ष ; पायस ; घृतपर्ण एवं कसार का भोजन कराये।उद्यापन मे चाँदी का तारक-मण्डल बनवाकर पूजन करे और उसे ब्राह्मण को दान करे।साथ मे मोदक ; बारह घड़े एवं दक्षिणा भी दे।

माहात्म्य ---

           यह व्रत बहुत महत्वपूर्ण एवं पुण्यदायक है।इसे सीता ; पार्वती ; रुक्मिणी ; सत्यभामा ; दमयन्ती आदि ने भी किया था।इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य जन्म-जन्मान्तरों के पापसमूह से मुक्त हो जाता है।जो स्त्री या पुरुष इस व्रत को करता है ; वह सूर्य सदृश देदीप्यमान विमान पर बैठकर नक्षत्रलोक मे जाता है।वहाँ दीर्घकाल तक सुखपूर्वक रहने के बाद विष्णुलोक जाने का सौभाग्य प्राप्त करता है।

          

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