अनङ्ग-त्रयोदशी-व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।इस व्रत को अनङ्ग ( कामदेव ) ने किया था।इसीलिए इसे अनङ्ग-त्रयोदशी-व्रत कहा जाता है।
कथा --
प्राचीन काल मे दक्ष-यज्ञ मे भस्म होने के बाद सती ने पार्वती के रूप मे हिमवान् के घर अवतार लिया।उसी समय तारकासुर का आतंक चरमसीमा पर पहुँच चुका था।ब्रह्मा जी ने बतलाया कि शिव जी के पुत्र द्वारा ही इसका वध हो सकता है।अतः देवताओं ने पार्वती के साथ शिव जी का विवाह कराने का प्रयास आरम्भ किया।उस समय शिव जी अखण्ड समाधि मे लीन थे।अतः इन्द्र ने कामदेव को बुलाकर निवेदन किया कि वह ऐसा प्रयास करे कि शिव जी के हृदय मे पार्वती के प्रति अत्यधिक रुचि उत्पन्न हो जाय।कामदेव ने स्वीकार कर लिया।
इसके बाद कामदेव वसन्त आदि अपने मित्रों के साथ शिव जी के पास पहुँचा।उसने समाधिस्थ शिव जी पर अपने बाणों का प्रहार कर दिया।उनकी समाधि भंग होने लगी।अतः उन्होंने क्रुद्ध होकर अपने नेत्राग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया।तब से कामदेव अनङ्गरूप से ( बिना अंग के ही ) सबके शरीर मे निवास करने लगा।उस समय इस कष्ट से मुक्त होने तथा शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कामदेव ने इस व्रत को किया था।
विधि --
व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को स्नानादि करके व्रत का संकल्प ले।फिर गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि द्वारा "शशिशेखर " नाम से शिव जी का विधिवत् पूजन करे।तिल चावल घृत आदि से हवन करे।दिन भर उपवास - पूर्वक शिव-स्मरण करता रहे।रात्रि मे मधु का प्राशन कर शयन करे।
इसी प्रकार वर्ष - पर्यन्त प्रत्येक मास की शुक्ला त्रयोदशी को व्रत करना चाहिए।इसमे प्रत्येक मास मे शिव जी के विविध नामो से पूजन तथा प्राशन का निश्चित विधान है।अतः पौषादि मासों मे क्रमशः योगेश्वर ; महेश्वर ; हरेश्वर ; सुरूपक ; महारूप ; प्रद्युम्न ; उमाभर्ता ; उमापति ; सद्योजात ; त्रिदशाधिपति तथा विश्वेश्वर नामो से शिव जी का पूजन करना चाहिए।साथ ही क्रमशः चन्दन ; मोतीचूर्ण ; कंकोल ; कर्पूर ; जायफल ; लवंग ; तिलोदक ; तिल ; अगरु ; स्वर्णोदक तथा दौनाफल का प्राशन करना चाहिए।
इस प्रकार वर्ष- पर्यन्त व्रत करे।वर्षान्त मे कलश स्थापित कर उसके ऊपर ताम्रपात्र मे श्वेतवस्त्र से आच्छादित शिव-प्रतिमा की स्थापना करे।गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि द्वारा उनका षोडशोपचार पूजन करके किसी शिव-भक्त ब्राह्मण को दान करे।साथ मे सवत्सा गौ ; छाता ; दक्षिणा आदि देकर सन्तुष्ट करे।
माहात्म्य --
शिव सम्बन्धी व्रतों मे अनङ्ग-त्रयोदशी-व्रत का महत्वपूर्ण स्थान है।जो व्यक्ति इस व्रत को करता है ; वह दीर्घायु बली एवं यशस्वी होता है।उसका सौभाग्य निरन्तर बढ़ता रहता है।वह समस्त सांसारिक सुखों को भोगकर अन्त मे शिवलोक को प्राप्त करता है।
No comments:
Post a Comment