शिवचतुर्दशी - व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।इसमे शिव-पूजन की प्रधानता होने के कारण इसे शिवचतुर्दशी - व्रत कहा जाता है।
कथा --
एक बार देवर्षि नारद जी ने भगवान शिव जी से भोग और मोक्ष प्रदान करने वाले किसी व्रत का वर्णन करने का अनुरोध किया।शिव जी ने कहा कि मेरे गण नन्दी भी इस विषय के अच्छे मर्मज्ञ हैं।अतः वे ही तुम्हें इस प्रकार के व्रत के विषय मे जानकारी देंगे।तब नन्दिकेश्वर जी ने शिवचतुर्दशी - व्रत का वर्णन किया।
विधि ---
व्रत करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को एक बार सात्विक आहार ग्रहण करे।सायंकाल भगवान शिव जी से इस प्रकार प्रार्थना करे --" हे भगवन् ! मै आपके शरणागत हूँ।मै चतुर्दशी को निराहार रहकर आपकी भलीभाँति अर्चना एवं स्वर्णनिर्मित वृषभ का दान करके दूसरे दिन भोजन करूँगा।" इस प्रकार प्रतिज्ञा करके शिव-स्मरण करते हुए रात्रि मे शयन करे।
दूसरे दिन चतुर्दशी को स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान शिव जी एवं माता पार्वती का गन्ध अक्षत पुष्प धूप दीप नैवेद्य आदि से षोडशोपचार पूजन करे।फिर जलपूर्ण कलश एवं वस्त्राभरण - विभूषित सुवर्ण-निर्मित वृषभ को ब्राह्मण को प्रदान करे।तत्पश्चात् प्रार्थना करे --" प्रीयतां देवदेवोऽत्र सद्योजातः पिनाकधृक् "।तदनन्तर ब्राह्मणों को भोजन एवं दक्षिणा से सन्तुष्ट करे।उसके बाद स्वयं दधिमिश्रित-घृत का प्राशन कर भूशयन करे।दूसरे दिन पूर्णिमा को विप्र-पूजन पूर्वक मौन होकर स्वयं भोजन करे।
इसी प्रकार वर्षपर्यन्त शुक्ला चतुर्दशी को व्रत करे।प्रत्येक महीने मे क्रमशः मन्दार ; मालती ; धतूरा ; सिन्दुवार ; अशोक ; मल्लिका ; लाल गुलाब ; मन्दार पुष्प ; कदम्ब ; श्वेत कमल तथा कमल-पुष्प से उमामहेश्वर का विधिवत् पूजन करे।साथ ही प्रत्येक मास मे क्रमशः गोमूत्र ; गोबर ; दूध ; दही ; घी ; कुशोदक ; पञ्चगव्य ; बेल ; कर्पूर ; अगरु ; जौ तथा काला तिल का प्राशन करे।
वर्षान्त मे वस्त्र आभूषण दक्षिणा आदि देकर ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करे।नीले रंग का वृषभ छोड़े।फिर चावल से परिपूर्ण ताम्रपात्र के ऊपर सुवर्ण-निर्मित उमामहेश्वर एवं वृषभ की प्रतिमा स्थापित करे।उसके समीप आठ मोतियों से युक्त शय्या स्थापित करे।फिर सभी वस्तुयें अपने गुरु या ब्राह्मण को दान करे।
माहात्म्य --
इस व्रत का वर्णन शिव जी के अन्यतम गण नन्दी जी ने किया है।इसलिए इसकी विशिष्ट महत्ता है।जो व्यक्ति इस व्रत को करता है ; वह समस्त सांसारिक सुखों का भोग कर अन्त मे मोक्ष को प्राप्त होता है।इस व्रत को करने से एक सहस्र अश्वमेध यज्ञ का पुण्यफल प्राप्त होता है।उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।वह दीर्घायु ; निरोग एवं सुख-समृद्धि पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।मृत्यु के बाद वह गणाधिप होकर करोड़ों कल्प तक शिवलोक मे निवास करता है।
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