रुक्मिणी - अष्टमी पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है।इस दिन रुक्मिणी का जन्म हुआ था।इसीलिए इसको रुक्मिणी - अष्टमी कहा जाता है।
कथा --
रुक्मिणी जी भगवान श्रीकृष्ण की पटरानियों मे प्रमुख थीं।वे विदर्भ - नरेश महाराज भीष्मक की पुत्री थीं।वे साक्षात् लक्ष्मी की अवतार थीं।युवावस्था होने पर उन्हें श्री कृष्ण के सौन्दर्य ; बल-पराक्रम ; गुण ; वैभव आदि की जानकारी मिली।उन्होंने श्रीकृष्ण के पास अपने विवाह का प्रस्ताव भेजा।रुक्मिणी का भाई रुक्मी उनका विवाह शिशुपाल के साथ करना चाहता था।अतः श्री कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर अपने साथ विवाह कर लिया।
विधि --
व्रत एवं पूजन करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को स्नानादि से निवृत्त होकर संकल्प ले।फिर किसी चौकी आदि पर सुवर्ण - निर्मित श्रीकृष्ण ; रुक्मिणी एवं प्रद्युम्न की प्रतिमा स्थापित करे।गन्ध पुष्प अक्षत धूप दीप आदि से विधिवत् पूजन करे।नैवेद्य के लिए विविधविध उत्तम पदार्थों को अर्पित करे।इसके बाद आठ सुवासिनी - सुहागिनी स्त्रियों को भोजन एवं दक्षिणा से सन्तुष्ट कर आशीष प्राप्त करे।
माहात्म्य ---
यह पर्व बहुत महत्वपूर्ण एवं पुण्यदायक है।इस व्रत को करने से रुक्मिणी जी की अतिशय कृपा प्राप्त होती है।ये भगवान श्रीकृष्ण की प्रियतमा थीं।इसलिए इस पूजन से भगवान श्रीकृष्ण की भी अनुकम्पा प्राप्त होती है।
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