Tuesday, 12 January 2016

त्रिप्राप्ति सप्तमी व्रत

           त्रिप्राप्ति सप्तमी व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की उस सप्तमी को किया जाता है ; जिस दिन हस्त नक्षत्र विद्यमान हो।इस    व्रत के प्रभाव से श्रेष्ठ कुल मे जन्म ; आरोग्य और धनाभिवृद्धि -- ये तीनो की प्राप्ति होती है।इसीलिए इसे त्रिप्राप्ति सप्तमी व्रत कहा जाता है।

कथा --

          एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी से जिज्ञासा व्यक्त की कि कोई ऐसा व्रत बतलायें ; जिसे करने से उपर्युक्त तीनो कामनायें पूर्ण हो सकें।तब ब्रह्मा जी ने इसी व्रत का निर्देश दिया था।

विधि ---

           व्रती नित्यकर्म से निवृत्त होकर संकल्प पूर्वक गन्ध अक्षत आदि से भगवान सूर्यनारायण का विधिवत् पूजन करे।इसे एक वर्ष तक प्रत्येक कृष्णा सप्तमी को करना चाहिए।साथ ही प्रत्येक महीने क्रम से बाजरा ; तिल ; व्रीहि ; यव ; सुवर्ण ; यव ;अन्न ; जल ; ओला ; जूता ; छाता और गुड़ का दान करे।स्वयं भी प्रत्येक मास मे क्रमशः शाक ; गोमूत्र ; जल ; घृत ; दूर्वा ; दधि ; धान्य; तिल ; यव ; धूप से गर्म जल ; कमल गट्टा तथा दुग्ध का प्राशन करे।

माहात्म्य ---

           इस व्रत को करने वाला व्यक्ति उत्तम कुल मे जन्म लेकर सदा निरोग एवं धन-धान्य से सम्पन्न रहता है।उसे समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

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