Monday, 25 January 2016

जयन्तीसप्तमी-व्रत

           जयन्तीसप्तमी-व्रत माघ शुक्ल सप्तमी को किया जाता है।इसी दिन सूर्यदेव ने सम्पूर्ण संसार को अपने प्रकाश से आलोकित करना आरम्भ किया था।इसीलिए इसे सूर्य-जयन्ती के रूप मे मनाया जाता है।
कथा --
--------        इस व्रत का वर्णन भगवान ब्रह्मा जी ने किया है।इसलिए इसकी महत्ता  बहुत अधिक है।
विधि ---
------           व्रती माघ शुक्ल पञ्चमी को एकभुक्त ; षष्ठी को नक्तव्रत और सप्तमी को उपवास पूर्वक सूर्यदेव का विधिवत् पूजन करे।अष्टमी को विधिवत् पारणा करे।
           इस व्रत को एक वर्ष तक प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष मे इसी प्रकार करना चाहिए।प्रत्येक तीन महीने बाद पारणा कर अग्रिम व्रत आरम्भ करना चाहिए।चैत्र मास की पारणा मे पञ्चगव्य का प्राशन करे।इस समय सूर्य-पूजन मे अन्य उपचारों के साथ बकुल-पुष्प ; कुंकुम ; घृतधूप एवं मोदक-नैवेद्य का प्रयोग आवश्यक है।फिर " चित्रभानुः प्रीयताम् " कहे।ब्राह्मण को भी मोदक खिलाये।
          आषाढ़ की पारणा मे कमलपुष्प ; श्वेतचन्दन ; गुग्गुलधूप ; तथा गुड़ के अपूप से सूर्य-पूजन करे।इस समय " भानुः प्रीयताम् " कहे।व्रती गोमय का प्राशन करे।आश्विन की पारणा मे सूर्य को मालती-पुष्प ; लाल चन्दन ; विजयधूप एवं घृतनिर्मित अपूप समर्पित करे।इस समय " आदित्यः प्रीयताम् " कहे और कुशोदक का प्राशन करे।पौष की पारणा मे रक्तकनेर के पुष्प ; रक्तचन्दन ; अमृत धूप एवं पायस-नैवेद्य द्वारा सूर्य-पूजन कर " भास्करः प्रीयताम् " कहे।स्वयं श्वेतगौ के मट्ठे का प्राशन करे।
माहात्म्य ---
------------      इस व्रत को करने से मनुष्य की समस्त कामनायें पूर्ण हो जाती हैं।पुत्रार्थी को पुत्र ; धनार्थी को धन और रोगी को आरोग्य की प्राप्ति होती है।व्रती सर्वत्र विजय प्राप्त करता है।वह समस्त पापों से मुक्त होकर अन्त मे सूर्यलोक को प्राप्त करता है।

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