पौष-पूर्णिमा पौष मास के शुक्ल पक्ष की अन्तिम तिथि है।इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है।इसी दिन से माघ-स्नान का आरम्भ होता है।लोग तीर्थस्थानों अथवा घर पर ही नियम पूर्वक पवित्र स्नान का संकल्प लेते हैं।इस दिन से नियमित दान ; ब्राह्मण-भोजन आदि का आरम्भ करते हैं।इसी दिन से तीर्थराज प्रयाग मे माघ मेला आरम्भ होता है ; जिसमे असंख्य लोग संगम-स्नान एवं कल्पवास करते हैं।
पूर्णिमा बहुत पवित्र तिथि मानी जाती है।इस दिन अनेक धार्मिक कृत्यों का सम्पादन किया जाता है।इस सन्दर्भ मे निम्नलिखित तथ्य ध्यान देने योग्य हैं --
1-- जिस दिन सूर्योदय काल मे चतुर्दशी हो और सायंकाल चन्द्रोदय-काल मे पूर्णिमा हो तो वह पूर्णिमा व्रत के लिए उपयुक्त होती है।
2-- जिस दिन सूर्योदय-काल मे पूर्णिमा हो ; तो वह स्नान दानादि की पूर्णमा कही जाती है।
3-- जिस दिन सूर्योदय से लेकर चन्द्रोदय तक पूर्णिमा व्याप्त हो तो वह स्नान ; दान ; व्रत आदि सभी कार्यों के लिए उपयुक्त होती है।
नोट -- पूर्णिमा सम्बन्धी अन्य जानकारियों के लिए मेरे इसी ब्लाॅग मे " पूर्णिमा-व्रत " नामक लेख देखें।
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