मधूकतृतीया-व्रत फाल्गुन शुक्ल तृतीया को किया जाता है।इसमे मधूक-वृक्षाश्रया गौरी जी का पूजन होने के कारण इसे मधूकतृतीया कहा जाता है।
कथा --
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प्रचीन काल मे समुद्र-मन्थन से निकलने वाले मधूक वृक्ष को भूलोक-वासियों ने पृथ्वी पर स्थापित किया।एक बार उसी वृक्ष का आश्रय लेकर माता गौरी जी विराजमान थीं।उस समय लक्ष्मी ; सरस्वती आदि देवियों ने उनका पूजन कर अभिमत फल प्राप्त किया।उसी समय से यह व्रत एवं पूजन आरम्भ हुआ।
विधि --
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व्रती प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प ले।फिर भगवती गौरी की प्रतिमा स्थापित कर गन्ध पुष्प अक्षत लालचन्दन केशर आदि से विधिवत् पूजन करे।उसके बाद अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु प्रार्थना करे --
ऊँ भूषिता देवभूषा च भूषिका ललिता उमा।
तपोवनरता गौरी सौभाग्यं मे प्रयच्छतु।।
दौर्भाग्यं मे शमयतु सुप्रसन्नमनाः सदा।
अवैधव्यं कुले जन्म ददात्वपरजन्मनि।।
इसके बाद मधूकवृक्ष का विधिवत् पूजन कर ब्राह्मणो को दक्षिणा प्रदान करे।
माहात्म्य --
जो कन्या इस व्रत को करती है ; उसे विष्णु के समान सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है।यदि स्त्री करे तो वह स्वस्थ और नीरोग रहते हुए शतायुषी होती है।बाद मे वह रुद्रलोक को प्राप्त होती है।
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