Saturday, 16 January 2016

षट्तिला-एकादशी-व्रत

           षट्तिला-एकादशी-व्रत माघ कृष्ण एकादशी को किया जाता है।इसमे तिलों का षट्विध ( छः प्रकार से ) प्रयोग होने से इसे षट्तिला एकादशी कहा जाता है।

कथा ---

           प्राचीन काल मे एक विष्णु-भक्त ब्राह्मणी थी।उसने व्रतोपवास तो बहुत किये थे किन्तु कभी दान नहीं दिया था।एक बार भगवान विष्णु कापालिक-वेश मे भिक्षायाचन हेतु उसके द्वार पर पहुँचे।ब्राह्मणी कुछ देना नहीं चाहती थी।अतः क्रुद्ध होकर उनके भिक्षापात्र मे मिट्टी का एक ढेला डाल दिया।
           कालान्तर मे उस ब्राह्मणी की मृत्यु हुई।पूर्व मे किये गये व्रतोपवास के प्रभाव से उसे वैकुण्ठ की प्राप्ति हुई।उसने कभी दान नहीं दिया था।इसलिए वहाँ भोजन के लिए उसे कुछ नहीं मिला।उसने भगवान से उलाहना दिया।भगवान ने समझाया कि तुम अपने घर लौट जाओ और अन्दर होकर द्वार बन्द कर लेना।देवपत्नियाँ जब द्वार खोलने को कहें तो उनसे षट्तिला एकादशी का पुण्यफल माँगना।ब्राह्मणी ने वैसा ही किया।एक देवपत्नी ने उसे पुण्य प्रदान किया।इसके बाद ब्राह्मणी ने षट्तिला एकादशी व्रत किया।इस व्रत के प्रभाव से वह अलौकिक रूप-लावण्य एवं धन-धान्य से समृद्ध हो गयी।

विधि --

           व्रती प्रातः स्नानादि नित्य कर्म करके संकल्प पूर्वक गन्धाक्षत आदि से भगवान विष्णु का विधिवत् पूजन करे।भगवन्नामोच्चारण पूर्वक हवन एवं रात्रि-जागरण करे।तत्पश्चात् ब्राह्मण पूजन कर उन्हें जलपूर्ण घट ; छाता ; वस्त्र आदि दान करे।
           इस दिन व्रती को तिल का छः प्रकार से प्रयोग करना चाहिए।तिल से स्नान ; तिल का उबटन ; तिल से हवन ; तिल-मिश्रित जल का पान ; तिल का दान और तिल का भोजन करने से यह षट्तिला एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है ---
तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।
तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी।।

माहात्म्य ---

           इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।तिल का दान करने से तिल बोने पर जितने तिल पैदा हो सकते हैं ; उतने सहस्र वर्षों तक मनुष्य स्वर्ग मे प्रतिष्ठित होता है।

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