रसकल्याणिनी-व्रत माघ शुक्ल तृतीया को किया जाता है।इसमे रस से माता गौरी का स्नान कराया जाता है।इसलिए इसे रसकल्याणिनी कहा जाता है।
कथा --
मत्स्यपुराण मे इसका वर्णन ईश्वर ने देवर्षि नारद से किया था।
विधि ---
व्रती प्रातः गोदुग्ध एवं तिल मिश्रित जल से स्नान करके व्रत का संकल्प ले।उसके बाद गौरी-प्रतिमा को मधु एवं गन्ने के रस से स्नान कराकर शुद्ध जल से स्नान कराये।कुंकुम का अनुपन करे।देवी का सर्वांगपूजन एवं प्रणाम करे।ब्राह्मण दम्पती को पूजन ; मधुरान्न-भोजन एवं श्वेतवस्त्रों से परिवेष्टित स्वर्णकमल सहित जलपूर्ण घट प्रदान कर सन्तुष्ट करे।उसके बाद कुमुदादेवी प्रीयताम् कहे।
इस प्रकार बारह महीने देवी का पूजन करे।प्रत्येक मास मे क्रमशः लवण ; गुड़ ; सरसों तेल ; मधु ; पानक ; जीरा ; दुग्ध ; दधि ; घृत ; मधु ; धनिया और शक्कर का सेवन त्याग दे।प्रत्येक मास मे व्रत के अन्त मे क्रमशः श्वेत लड्डू ; गोझिया ; पूरी ; घेवर ; पूआ ; आटे का पूआ ; मण्डक ; दुग्ध ; शाक ; दधिमिश्रित अन्न ; इण्डरी तथा अशोकवर्तिका को एक करवा मे रखकर पूर्णपात्र सहित ब्राह्मण को दान देना चाहिए।प्रत्येक महीने मे क्रमशः कुमुदा ; माधवी ; गौरी ; रम्भा ; भद्रा ; जया ; शिवा ; उमा ; रति ; सती ; मंगला और रतिलालसा " प्रीयताम् " कहे।प्रत्येक मास मे पञ्चगव्य का प्राशन और उपवास करे।असमर्थता मे नक्तव्रत करे।
वर्षान्त मे करवा मे शक्कर भरकर उसके ऊपर गौरी की स्वर्णप्रतिमा रखकर रुद्राक्ष की माला ; कमण्डलु और गौ का दान करे।
माहात्म्य ---
इस व्रत को करने से व्यक्ति तुरन्त पापमुक्त हो जाता है।उसे नौ अरब एक हजार वर्षों तक कोई कष्ट नही होता है।जो मनुष्य प्रत्येक मास मे स्वर्णकमल का दान करता है ; उसे हजारों अग्निष्टोम यज्ञो का पुण्यफल प्राप्त होता है।इस व्रत को सधवा विधवा अथवा कन्या भी कर सकती है।
No comments:
Post a Comment